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कन्हैया के दौरे से तेज होगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध की राजनीति

जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बिहार दौरे ने राज्य में नरेंद्र मोदी विरोध की राजनीति को गति मिलने की संभावना बढ़ा दी है। उनका यह दौरा ऐसे वक्त में हुआ है जब नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव में भाजपा के खिलाफ बड़ी सफलता मिली है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sun, 01 May 2016 10:09 AM (IST)Updated: Mon, 02 May 2016 10:03 AM (IST)
कन्हैया के दौरे से तेज होगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध की राजनीति

पटना [एसए शाद]। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बिहार दौरे ने राज्य में नरेंद्र मोदी विरोध की राजनीति को गति मिलने की संभावना बढ़ा दी है। उनका यह दौरा ऐसे वक्त में हुआ है जब नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव में भाजपा के खिलाफ मिली बड़ी सफलता को देशव्यापी स्वरूप देने के लिए संघमुक्त भारत का नारा दिया है।

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सरकार में उनके सहयोगी दल राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद भी लगातार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर हैं। वह तो राकांपा अध्यक्ष शरद पवार से पहले ही नीतीश कुमार को अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किए जाने की गुंजाइश का समर्थन कर चुके हैं।

कन्हैया के दो दिवसीय दौरे की शनिवार को जिस अंदाज में शुरुआत हुई वह इस बात का खुला संकेत थी कि नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, वाम दल सहित संपूर्ण गैर-भाजपाई दल उन्हें नरेंद्र मोदी विरोध के प्रतीक के रूप में देख रहे हैं। कन्हैया ने भी खुद को इसी रूप में प्रोजेक्ट किया।

उन्होंने केंद्र सरकार की कृषि नीति से लेकर ग्रामोदय योजना, शिक्षा के बजट में कटौती, देश में असहिष्णुता का माहौल जैसे मुद्दों को उछाला। अपना आइडियल उन्होंने स्वामी सहजानंद सरस्वती, कर्पूरी ठाकुर और रोहित वेमुला को बताया। बिहार जैसे राज्य में उनकी इस बात की जातीय समीकरण के राजनीतिक आईने में परख भी शुरू हो गई है।

अफजल गुरू को आइडियल मानने के आरोप को उन्होंने बड़े ढंग से खारिज करते हुए यह भी कह दिया कि जिन्हें अफजल गुरू की फांसी पर एतराज है, उन्हें अपनी बातें रखने का अधिकार है। इसी स्टाइल में उन्होंने नीतीश कुमार के शराबबंदी के फैसले का भी समर्थन कर दिया। कहा कि कोई क्या खाए, क्या पीए, इसपर पाबंदी नहीं लगनी चाहिए। लेकिन, बिहार जैसे राज्य में जहां घरेलू ङ्क्षहसा और अपराध अधिक हैं, और जहां महिलाएं शराब के कारण प्रताडि़त होती हैं, वहां ऐसी पाबंदी जरूरी है।

भाजपा को भी कन्हैया के दौरे की अहमियत का एहसास था, इसी कारण उसके बुद्धिजीवी मंच ने शनिवार को अभिव्यक्ति की आजादी पर संगोष्ठी आयोजित की जिसमें एमजे अकबर मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। उन्होंने कन्हैया पर जोरदार हमला बोला। रंगकर्मी अनीश अंकुर की मानें तो कन्हैया कुमार के दौरे ने उन दलों पर बहुत प्रभाव डाला है जो सांप्रदायिकता एवं नव-उदारवाद नीति के खिलाफ हैं।

लालू प्रसाद ने इसी कारण यह टिप्पणी की है-'कन्हैया राष्ट्रवाद के पाखंड की कलई खोलेगा। गैर-भाजपाई दल कन्हैया की इस खूबी को भी गंभीरता से ले रहे हैं कि वह पूरी तैयारी से कोई सवाल उठाता है, हर कठिन सवालों पर उसकी सोच बहुत स्पष्ट है, और यह भी कि अपनी बातें बहुत सरल शैली में जनता के सामने रखता है। कन्हैया के दौरे का विचित्र पहलू यह रहा कि उसने पटना पहुंचने के बाद अनेक प्रतिमाओं पर माल्यार्पण किया। म

हात्मा गांधी, भगत सिंह, पीर अली, जेपी, सुभाष चंद्र बोस, डा. अंबेडकर, कर्पूरी ठाकुर, वीर कुंवर सिंह एवं चंद्रशेखर सिंह की प्रतिमाओं के अलावा शहीद स्मारक एवं कारगिल स्मारक पर माल्यार्पण किया। कन्हैया ने संघमुक्त भारत के नारे पर जोर देते हुए कहा कि इसके लिए ठोस कदम उठे और लोगों को जुमलेबाजी का जवाब काम कर के दिया जाए।


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