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आक्रामक हुआ महागठबंधन का चुनाव प्रचार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुजफ्फरपुर रैली ने जहां भाजपा कार्यकर्ताओं में नए उत्साह का संचार किया है, वहीं महागठबंधन, विशेषकर सत्ताधारी दल जदयू ने अपने चुनावी प्रचार को आक्रामक तेवर दे दिया है।

By Pradeep Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 29 Jul 2015 09:18 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2015 09:20 AM (IST)
आक्रामक हुआ महागठबंधन का चुनाव प्रचार

पटना [एसए शाद]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुजफ्फरपुर रैली ने जहां भाजपा कार्यकर्ताओं में नए उत्साह का संचार किया है, वहीं महागठबंधन, विशेषकर सत्ताधारी दल जदयू ने अपने चुनावी प्रचार को आक्रामक तेवर दे दिया है।

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पहले जदयू भाजपा के आरोपों का जवाब देते हुए अपनी उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच में जा रहा था, मगर अब इसने प्रधानमंत्री के वादों एवं दावों को लेकर भाजपा को बहस की चुनौती देनी शुरू कर दी है। जातीय जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक किए जाने की मांग को लेकर बिहार बंद के सफल आयोजन के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी आक्रामक अंदाज में ताल ठोकने लगे हैं।

जदयू का तो अंदाज प्रधानमंत्री की रैली के तीन घंटे के बाद ही आक्रामक हो गया। डीएनए में खराबी की बात से आक्रोशित मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम को सबसे पहले उनके बिजली के संबंध में दावे पर घेरा और चुनौती दी कि अगर वे चाहें तो अन्य सभी मुद्दों को छोड़ बिजली के सवाल पर ही चुनाव लड़ लें।

14वें वित्त आयोग की अनुशंसा, केंद्रीय योजनाओं में कटौती से लेकर प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन की गई योजनाओं पर उन्होंने सवाल खड़े किए। उनकी पार्टी जदयू ने इन मुद्दों पर भाजपा को खुली बहस का न्योता देना शुरू कर दिया।

पार्टी सूत्रों ने बताया कि यह भी तय किया गया है कि 7 अगस्त को विधानसभा का मानसून सत्र समाप्त होने के पश्चात नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की संयुक्त सभाएं होंगी। कांग्रेस के बड़े नेता भी शामिल होंगे।

गठबंधन को लेकर कांग्रेस के अंदर कुछ कन्फ्यूजन के कारण अबतक पार्टी का चुनावी तेवर बहुत आक्रामक नहीं था। सूत्रों की मानें तो प्रदेश कांग्रेस के नेता अधिक सीटों पर चुनाव लडऩे की मंशा दिल में रख राजद के बिना ही नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव में जाना चाहते थे।

मगर कांग्रेस के एक बड़े समूह का मानना था कि अगर कांग्रेस कुछ अधिक सीटें जीत भी गई और नीतीश कुमार की सरकार नहीं बनी तो कोई फायदा नहीं होगा। राजद को साथ लेकर आगे बढऩे से अगर नीतीश कुमार सरकार बना लेते हैं तो व्यापक रूप से कांग्रेस को ही फायदा होगा।

भाजपा की बिहार में हार का राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक लाभ तब कांग्रेस को ही होगा। जदयू नेताओं का मानना है कि राजद के साथ गठबंधन के कारण भाजपा भले ही जंगलराज एवं कुशासन की वापसी जैसे आरोप लगाए लेकिन हकीकत यह है कि जमीन पर राजद अभी भी मजबूत स्थिति में है।

भाजपा के साथ गठबंधन में 2005 और 2010 का चुनाव जीतने के बाद भी हम राजद का जमीनी प्रभाव मिटा नहीं सके। वहीं यह भी हकीकत है कि जदयू के पास समर्पित कार्यकर्ताओं और समर्पित वोट की कमी है। हमारी सबसे बड़ी ताकत नीतीश कुमार जैसे करिश्माई नेता हैं।

हमारा प्रचार अभियान भले ही राजद से कई गुना व्यवस्थित है लेकिन यह भी सत्य है कि लालू प्रसाद एक प्रभावशाली नेता हैं और चाहे वह टमटम से प्रचार करें या ट्विटर से, वह अपनी बात अपने लोगों तक पहुंचा देते हैं। जहां तक जदयू के प्रचार अभियान का सवाल है तो यह पारंपरिक एवं आधुनिक तरीकों का मिश्रण है।

हम पहले आधुनिक तकनीक पर अधिक जोर दे रहे थे, मगर अब साइकिल एवं रिक्शे से भी पारंपरिक तरीके से हमारा प्रचार हो गया है।

हम अब भाजपा के आरोपों के जवाब देने की बजाय उसे प्रधानमंत्री के लोकसभा चुनाव के दौरान किए गए वादों और फिर उसके 14 माह बाद मुजफ्फरपुर रैली में किए गए दावों के आधार पर घेरेंगे, क्योंकि भाजपा उनके ही चेहरे को सामने कर बिहार का चुनाव लड़ रही है।


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