नमो में नायक की छवि देख रहे युवा
दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (नमो) का जादू भले ही न चला हो, पर बिहार की युवा पीढ़ी नमो में अपने नायक की छवि देख रही है। परिवर्तन रैली में रोजगार की तलाश में भटक रहे नौजवान, दलित और यदुवंशी ही प्रधानमंत्री के फोकस में रहे।
पटना [सुभाष पाण्डेय]।दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (नमो) का जादू भले ही न चला हो, पर बिहार की युवा पीढ़ी नमो में अपने नायक की छवि देख रही है। परिवर्तन रैली में रोजगार की तलाश में भटक रहे नौजवान, दलित और यदुवंशी ही प्रधानमंत्री के फोकस में रहे।
प्रधानमंत्री के प्रति नौजवानों के आकर्षण को विधानसभा चुनाव में भाजपा अधिक से अधिक भुनाने में जुट गई है। मुजफ्फरपुर के मंच पर ही लाखों की भीड़ को देख गदगद नमो ने प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय की न सिर्फ पीठ थपथपाई, बल्कि पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के उस आग्रह को भी स्वीकार कर लिया, जिसमें उन्होंने चुनाव की घोषणा से पहले बिहार में ऐसी दो-तीन और रैलियों के लिए समय मांगा था।
गया में क्रांति दिवस के मौके पर उसी कड़ी में प्रधानमंत्री ने 9 अगस्त को दूसरी परिवर्तन रैली के लिए समय भी दे दिया।
मुजफ्फरपुर की रैली में नौजवानों का जोश और उत्साह अगर कहीं कोई संकेत देता है तो वह यह कि बिहार का युवा तबका नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व में अपने सपने साकार होते देख रहा है। नमो ने यह कहकर इसे बल दिया कि आप सपने देखिए, उसे पूरा मैं करूंगा। उन्होंने कहा कि एक बिहारी युवक राजीव प्रताप रूडी को आपके कौशल विकास की ट्रेनिंग देने की जवाबदेही दिया हूं, ताकि आपको अपने बूढ़े मां-बाप को छोड़कर रोजगार की तलाश में दूसरे राज्य जाना न पड़े।
माथे पर पट्टा और शरीर को भगवा रंग में रंगे नौजवानों का हुजूम बैरिकेडिंग तोड़ते हुए जिस तरह से आगे बढ़ रहा था, वह यह बता रहा था कि आज भी उसके रियल हीरो नरेंद्र मोदी ही हैं।
इस रैली में नमो ने केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को अपने आजू-बाजू में बैठाकर उन्हें खास तवज्जो दिया और भाषण में उनके नाम का जिस अंदाज में उल्लेख किया उससे साफ झलक रहा था कि विधानसभा चुनाव में समाज के सबसे निचले पायदान के लोग उनकी प्राथमिकता में हैं।
भोज में आमंत्रित कर थाली खींचने के प्रसंग का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि उस दिन मैंने भी जहर पीया था, लेकिन किसी से बोला नहीं; पर जब मांझी जैसे महादलित के साथ यही हुआ तब लगा शायद डीएनए ही गड़बड़ है।
लोकसभा चुनाव से पहले पटना की हुंकार रैली में नरेंद्र मोदी ने द्वारिका से यदुवंशियों के तार जोड़ते हुए इस वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की और चुनाव में इसका उन्हें लाभ भी मिला। ठीक वैसे ही इस बार भी यह तबका उनके फोकस में रहा। नमो ने राजद का न सिर्फ नया नामकरण किया, बल्कि लालू को अपने बेटे-बेटियों की चिंता में डूबा राजनेता करार देकर इस समुदाय की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश भी की।