बिहार में सपा ने जदयू- राजद की राह में खड़ी की मुश्किलें
करीब सत्रह साल की दुश्मनी काफी- उठापटक के बाद दोस्ती में बदली। भाजपा को पटखनी देने को नीतीश और लालू की गाड़ी सरपट पटरी पर दौडऩे लगी। सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक समाजवादी पार्टी की इंट्री ने दोनों की राह में मुश्किलें खड़ी कर दी।
पटना [अनिल सिंह झा]। करीब सत्रह साल की दुश्मनी काफी- उठापटक के बाद दोस्ती में बदली। भाजपा को पटखनी देने को नीतीश और लालू की गाड़ी सरपट पटरी पर दौडऩे लगी। विधान परिषद के चुनाव में सीटों का तालमेल हो गया। सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक समाजवादी पार्टी की इंट्री ने दोनों की राह में मुश्किलें खड़ी कर दी।सपा ने विधानसभा चुनाव में 25 सीट की मांग कर दोनों दलों को सकते में डाल दिया।
जनता परिवार की एकजुटता की कोशिश नाकाम होने के बाद बिहार में भाजपा को रोकने के लिए सपा नेता मुलायम सिंह यादव दो बड़े नेता नीतीश और लालू को मनाने का प्रयास करते रहे। काफी प्रयास के बाद दोनों कांगे्रस और राकांपा के संग विधान परिषद चुनाव के मैदान में उतरने पर मान गए। समझौते के तहत राजद और जदयू को दस- दस तथा कांगे्रस को चार सीटें मिलीं। कांगे्रस ने अपने हिस्से की कटिहार सीट राकांपा को दे दी।
विधान परिषद के चुनाव में बात बनने से विधानसभा चुनाव का राह आसान दिखने लगा। विधानसभा चुनाव में सीटों पर भी तालमेल हो गया। विधानसभा की 243 सीटों में से जदयू व राजद ने 100-100 सीटों पर और कांगे्रस को 33 तथा शेष दस सीटें राकांपा को देने पर सहमति बनी।
एक बार फिर सियासत के गलियारे में तालमेल की गाड़ी दौडऩे लगी और चुनाव में जीत और हार का आकलन किया जाने लगा। महत्वाकांक्षा को लेकर चर्चित लालू व नीतीश का अहम अचानक नेतृत्व के सवाल पर टकराया। इस मुद्दे पर दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार न थे। बात बिगडऩे लगी, तालमेल के वजूद पर संकट उत्पन्न हो गया। दोनों को मनाने के लिए जनता परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव को हस्तक्षेप करना पड़ा।
आखिरकार लालू ने नीतीश के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया। सीट बंटवारे और नेतृत्व का संकट समाप्त होने के बाद राजद, जदयू, कांगे्रस व राकांपा के नेताओं ने नए जोश के साथ भाजपा पर हमला प्रारंभ कर दिया। भाजपा में भी बेचैनी बढ़ी और चारों को रोकने का मंथन शुरू हुआ। विधान परिषद चुनाव के बाद जदयू-राजद विधानसभा चुनाव की सीटों पर उम्मीदवार को लेकर बात करेंगे।
सीटों के तालमेल के दौरान नीतीश और लालू जनता परिवार की अहम पार्टी सपा को भूल गए। इन लोगों ने विधान परिषद चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी सपा को एक सीट देने की जरूरत ही नहीं समझी। उत्साह से लबरेज चारों दल के नेता नीतीश के नेतृत्व में अपनी सरकार बनना तय मान कर चल रहे थे कि अचानक रहस्यमय फिल्म की तरह सपा ने इंट्री की और विधानसभा चुनाव में 25 सीटों की मांग कर दी। इस डिमांड ने लालू और नीतीश की मुश्किलें बढ़ा दी। कांगे्रस और राकांपा की सीटों को कम करना आसान न होगा। सरकार बनने की स्थिति में अपना वजन मजबूत रखने को जदयू और राजद भी अपनी सीटों की कुर्बानी देने को तैयार न होंगे। ऐसे में सपा को 'एडजस्ट' करने के लिए नीतीश और लालू के सिर पर बल पडऩा तय है।