Move to Jagran APP

नेपाल का आंखों देखा हाल- जहां थे, वहीं पे मौत से सामना

धरती डोल रही थी। इमारतें भरभरा कर गिर रहीं थीं। तंग गलियों से भागने के क्रम में कोई मकान के मलबे में दब जा रहा था तो कोई फट रही धरती में विलीन।

By pradeep Kumar TiwariEdited By: Published: Tue, 28 Apr 2015 11:31 AM (IST)Updated: Tue, 28 Apr 2015 11:33 AM (IST)
नेपाल का आंखों देखा हाल- जहां थे, वहीं पे मौत से सामना

नेपाल से लौटकर संजय उपाध्याय। धरती डोल रही थी। इमारतें भरभरा कर गिर रहीं थीं। तंग गलियों से भागने के क्रम में कोई मकान के मलबे में दब जा रहा था तो कोई फट रही धरती में विलीन। हम पर मालिक का करम रहा सो जान बच गई, वरना....। ये कहना था कुलेश्वर बल्लखू के उन बिहारवासियों व भारतीयों का जिन्होंने खुली आंखों से प्रकृति की विनाशलीला और सामने होती मौत देखी। इस इलाके में सर्वाधिक संख्या में बिहार के लोग रहते हैं। उन्होंने कहा, त्रासदी के बाद का हर पल भी तो मौत जैसा है काठमांडू व अन्य प्रभावित इलाकों में। हां, जो लोग बचे हैं उन्हें खुले आसमान के नीचे तपती धूप के बीच बचाने की कोशिशें जारी हैं।

loksabha election banner

फल का कारोबार कर रहे महावीर व राजेश्वर प्रसाद गुप्ता ने कहा, मौत कितनी भयावह होती है इसे शनिवार को देखा। रविवार भी कुछ वैसा ही था। जलजले से लेकर अब तक का हर पल मौत जैसा लगता है। हर आहट मौत सी महसूस होती है। काठमांडू में बढ़ई मिस्त्री का काम करनेवाले सेवराहा, हरिसिद्धि के राजकिशोर ठाकुर, राजेश ठाकुर, उमेश ठाकुर आदि ने कहा कि जलजले के वक्त जिंदगी ईश्वर के हवाले कर दी थी। हालांकि, उन्होंने बचा लिया। वरना जिस तरह से धरती फट रही थी, इमारतें गिर रही थीं, जान बच गई वह बड़ी बात है।

नेपाल की राजधानी काठमांडू से लेकर प्रभावित इलाकों में भले ही सोमवार को दिनभर लोगों ने झटका महसूस नहीं किया, लेकिन अब भी जिंदगी नाच रही, धरती घूमती नजर आ रही है। अब भी हालात काफी भयानक हैं। इलाकों में पेट्रोल-डीजल अथवा अन्य ईंधन मिलना मुश्किल है। राहत व बचाव कार्य तो चल रहे, लेकिन पीड़ा कम नहीं हो रही। नेपाल के हेथौड़ा में काम करनेवाले नारायण शर्मा, अशर्फी शर्मा, उपेंद्र शर्मा, संतोष ने तो इसे जिंदगी से जंग बताई। कहा, जान बच गई, अब तो बस एक ही चाह है कि परिजनों के पास चले जाएं।

------

बालाजी आर्मीं कैंप में भी खौफ

नेपाल के बालाजी स्थित आर्मी कैंप में भी खौफ का आलम दिखा। कैंप में रुके घोड़ासहन के अताउल्लाह व फुलवार गम्हरिया निवासी असलम ने कहा कि वहां जब धरती फटने लगी तो आर्मी कैंप में आसरा लिया, लेकिन बारिश शुरू होते वहां भी आर्मी के जवान आ गए। कठिनाई होने पर उन्होंने काफी बुरा बर्ताव किया। असलम के शब्दों में-'एक दिन तो चूड़ा आदि मिला। अगले दिन वो भी नहीं। सभी भूख से तड़पते रहे। स्वदेश लौटने की कोशिश की तो किराए के चक्कर में फंस गए। 5 से 10 गुणा अधिक पैसे लिए जा रहे थे। पास में जो कुछ बचा था उसे किराए में खर्च कर दिया। बल्लखू से वीरगंज तक के लिए एक सूमो ने 30 हजार रुपये लिए, जिसमें नौ लोग आए। वास्तर में वहां लोगों की जिंदगी तो बची है, लेकिन हालात काफी खतरनाक। न खाने को कुछ और न मिल रहा पीने को पानी। जिनके पास पैसे नहीं हैं उनका तो बुरा हाल है।Ó

---

भेजी गईं 25 बसें, ईंधन व खाद्य सामग्री की भी हुई आपूर्ति

काठमांडू में डीजल-पेट्रोल समाप्त होने की सूचना मिलते ही भारतीय प्रशासन गंभीर हो गया। राज्य सरकार की ओर से फिलहाल 25 बसें काठमांडू भेजी गई हैं। रक्सौल में लगे कैंप में जिलाधिकारी भरत दूबे ने बताया कि 25 बसें सीधे काठमांडू भेजी जा रही हैं। ये बसें वहां फंसे लोगों को रक्सौल लाएंगी। बस के लिए ईंधन के साथ-साथ आनेवालों के लिए खाने-पीने की सामग्री भी आपूर्ति की गई हैं।

---

वीरगंज में भी सन्नाटे का आलम

जलजले के बाद इंडो-नेपाल सीमा इलाके के वीरगंज में भी खौफ का आलम है। बाजार खुले हैं, लेकिन भीड़ नजर नहीं आ रही। वजह यह कि लोगों के मन में खौफ समा गया है। ऊपर से काठमांडू व नेपाल के अन्य हिस्सों में आवागमन बाधित है। भारत से लोगों का आना-जाना बंद है। वर्तमान में बस बल्लखू से ही लोग आ-जा रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.