खाद्य सुरक्षा कानून ने बनाया पीडीएस को प्रभावी
जागरण संवाददाता, पटना : बिहार में खाद्य सुरक्षा कानून के लागू होने के बाद परिस्थितियों में उल्लेखनी
जागरण संवाददाता, पटना : बिहार में खाद्य सुरक्षा कानून के लागू होने के बाद परिस्थितियों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। लीकेज 90 फीसदी से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है, हालांकि अब भी कुछ चुनौतियों से निबटने की जरूरत है। पीडीएस का दुखद पहलू यह है कि अभी भी डीलरों द्वारा निर्धारित दर से ज्यादा पैसे की मांग की जाती है और वितरण भी अनियमित है। ये बातें आइआइटी, दिल्ली की प्रोफेसर रीतिका खेड़ा और रांची यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक के प्रोफेसर ज्यां द्रेज ने शुक्रवार को एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान में आयोजित प्रेस वार्ता में बताई।
लाभार्थियों की सूची हुई विश्वासप्रद
उन्होंने बताया कि बिहार में खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के एक साल बाद बांका, गया, पूर्णिया और सीतामढ़ी जिले में 'बिहार एनएफएसए सर्वे-2014' किया गया। जिसमें एग्रो क्लाइमेटिक जोन के आधार पर एक हजार परिवारों का सर्वे किया गया। सर्वे में यह बात सामने आई कि बिहार की जनवितरण प्रणाली (पीडीएस) ग्रामीण इलाकों में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित सर्वेक्षण के आधार पर अब लाभार्थियों की सूची ज्यादा विश्वसनीय है। अन्न की गुणवत्ता में सुधार होने के साथ वितरण क्षेत्र भी व्यापक हुआ है।
पीडीएस का जिम्मा सामूहिक संस्थानों को मिले
दूसरी ओर अभी भी 16 फीसदी परिवारों को योग्य होने के बावजूद अभी तक नया राशन कार्ड नहीं मिल सका है। राशन पहुंचने में अभी भी 1-2 महीने का विलंब हो जाता है और भ्रष्टाचार भी जारी है। उन्होंने सुझाव दिया कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए पीडीएस डीलरों को हटाकर जन वितरण प्रणाली को चलाने का जिम्मा सामूहिक संस्थानों जैसे ग्राम पंचायत, कोऑपरेटिव या एसएचजी को देना चाहिए जैसा कि छत्तीसगढ़ और ओडिशा में लागू है।
पीडीएस की अनदेखी आसान नहीं
संस्थान के निदेशक प्रो डॉ डीएम दिवाकर ने कहा कि पीडीएस व्यवस्था की अनदेखी अब राजनीतिक पार्टियों के वश में नहीं है, क्योंकि ग्रामीण इसे विभिन्न सरकारों से जोड़ते हैं। जैसे लाल कार्ड लालू ने दिया, कूपन नीतीश ने दिया और मांझी ने नया कार्ड दिया। उन्होंने कहा कि पीडीएस की चुनौतियां बढ़ी है मगर इसके अनुसार अद्योसंरचना का विकास नहीं हो सका है। अभी भी यहां स्टोरेज गोदाम की कमी है और रैक नहीं मिल पाता। पीडीएस हमारी प्राथमिकता में पहले नहीं थी वर्ना हमें एमडीएम और आइसीडीएस की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। हर एक किमी पर स्कूल हो सकता है तो पीडीएस क्यों नहीं? पीडीएस को स्कूल की उपस्थिति से जोड़ा जा सकता है।