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हिन्दू ही नहीं यहां मुस्लिम भी करते हैं छठ

लोक आस्था का पर्व छठ केवल हिंदू ही नहीं करते बल्कि जेपी के पैतृक गांव लाला टोला सिताबदियारा में एक मुस्लिम परिवार भी है जो

By Mrityunjay Kumar Edited By: Published: Mon, 27 Oct 2014 04:58 PM (IST)Updated: Mon, 27 Oct 2014 05:00 PM (IST)
हिन्दू ही नहीं यहां मुस्लिम भी करते हैं छठ

सिताबदियारा (सारण) । लोक आस्था का पर्व छठ केवल हिंदू ही नहीं करते बल्कि जेपी के पैतृक गांव लाला टोला सिताबदियारा में एक मुस्लिम परिवार भी है जो उसी आस्था से सूर्य उपासना का छठ हिंदुओं के साथ मिलकर करता है। इतना ही नहीं छठ घाटों पर व्रतियों की सेवा करने से भी लालाटोला निवासी मंजूर मियां कभी पीछे नहीं होते। छठ के प्रति उनकी गहरी आस्था कोई आज से नहीं बल्कि वर्ष 1980 से ही है। उनकी गहरी आस्था को देखकर ही गांव के सभी हिन्दू परिवार इस पर्व में उनका भरपूर सहयोग करते हैं।

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दैनिक जागरण ने सोमवार को जब उनसे यह जानने का प्रयास किया कि आखिर यह सूर्योपसना का छठ पर्व करने की प्रेरणा उन्हें कहां से मिली। इसपर मंजूर मियां ने बताया कि मेरा ननिहाल छपरा के शीतलपुर में है। बचपन में मेरे चेहरे पर एक लहसन का दाग था। तभी मेरे ननिहाल में ही इस दाग को छुड़ाने के लिए छठ व्रत की मन्नतें मांगी गयी। कहा भी गया कि छठी मइया यह दाग ठीक कर दें तो मैं आजीवन उनका व्रत रखूंगा। कुछ दिनों के बाद वह दाग गायब हो गया और मैं सूर्य उपासना का व्रत छठ करने लगा। वर्ष 1980 से शुरू किया यह व्रत मैं प्रति वर्ष करता हूं। हां कभी गांव नगर में कोई दुखद घटना हो जाता है तभी इस व्रत पर विराम लगता है, अन्यथा घोर संकट में भी मैं इस व्रत को करने से पीछे नहीं हटता।

भीख मांगकर करते हैं पूजा की तैयारी

मंजूर मियां बताते हैं कि छठ में भीख मांगने का भी बड़ा महत्व है। वैसे लोग इस मामले में शर्माते हैं किन्तु छठ में संपन्न लोगों को भी इस परम्परा का निर्वाह करना चाहिए। बताया कि मैं संपूर्ण सिताबदियारा में छठ पूजा के लिए भीख मांगता हूं। साथ मैं सभी के साथ मिलकर तैयारी करता हूं। छठ के हर नियमों का पालन करने के साथ-साथ छठ के दिन सुबह चाय, दातून से व्रतियों की सेवा करता हूं। इसके अलावा डंके की चोट से छठ घाट की शोभा भी बढ़ाता हूं। यह सब करने से मेरे मन को बेहद शांति मिलती है।

मंजूर की बजती डुग्गी देती है महत्वपूर्ण सूचना

सिताबदियारा के लाला टोला निवासी मंजूर मियां पेशे से डुग्गी बजाने का काम करते हैं। किसी बड़े नेता का जेपी के गांव में आगमन हो तो मंजूर की डुग्गी यानि डंका उनके आगवानी में पहले से खड़ा होता है। जब मंजूर अपनी डुग्गी लेकर गांव में निकलते हैं तो हर कोई समझ जाता है कि कोई न कोई महत्वपूर्ण सूचना है। गरीबी की चादर में लिपटे मंजूर को जेपी के गांव का निवासी होने का भी गर्व कम नहीं है। इनके सूचना देने का अंदाज भी बेहद निराला है।


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