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मां की इलाज के खातिर खुद को बेच डाला सुभान ने

By Edited By: Published: Fri, 01 Aug 2014 12:08 AM (IST)Updated: Fri, 01 Aug 2014 12:08 AM (IST)
मां की इलाज के खातिर खुद को बेच डाला सुभान ने

चन्द्रशेखर, पटना : गया जिले के दरियापुर गांव निवासी मो. मुन्ना की पत्‍‌नी बीबी फातिमा गंभीर रूप से बीमार थी। उसे सर्जरी करवाना था जिसके लिए पैसे नहीं थे। गांव के ही सनौव्वर सेठ ने उसे दो हजार रुपये देकर सरकारी अस्पताल में उसकी सर्जरी करवा दी। हालांकि वह इस इलाज से पूरी तरह ठीक तो नहीं हो सकी परंतु सेठ का कर्जा चढ़ चुका था। सेठ का कर्जा चुकाने के लिए उसने अपने जिगर के टुकड़े नौ वर्षीय मो. सुभान को सेठ के हवाले कर दिया।

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सेठ ने उसे जयपुर की एक चूड़ी फैक्ट्री के हवाले कर दिया। फैक्ट्री के मालिक से प्रति माह तीन हजार सेठ के खाते में चला जाता था। सुभान की मां के हाथों में मात्र 700 रुपये मिलते थे। शेष 2300 रुपये सनौव्वर हड़प जाता था। हालांकि बाल मजदूरी से मुक्ति के बाद सुभान खुश नहीं है। उसे चिंता खाए जा रहा है कि अब उसकी मां का इलाज कैसे होगा? कहां से आएंगे इतने रुपये? फिर से सेठ के पास बेगारी करनी पड़ेगी।

यह अकेले सुभान की ही कहानी नहीं है बल्कि गया के ही मंझौली के रहने वाले नौ वर्षीय सरोज कुमार के साथ ही दर्जनों बच्चों की है। सरोज भी दो भाई है। पिता दुनिया में नहीं हैं। बड़ा भाई होने के नाते वह पास के ही दलाल सेठजी के माध्यम से मजदूरी करने जयपुर गया था। चार माह नौकरी के बाद महज 3000 हजार रुपये उसे मिला था। उसकी मां शौच को खेत में जाती थी। उसे बहुत शौक था कि पैसे जमा कर घर में शौचालय बनाएगा जिससे मां को आराम होगा। सात वर्षीय मोजाविल जयपुर में नौकरी इसलिए करने गया था कि उसका मकान बन जाए। उसकी मां बीमार रहती हैं और पापा राजमिस्त्री का काम गांव में ही करते हैं। गया के ही रहने वाले संजय कुमार अपनी बहन की शादी के लिए जयपुर के चूड़ी फैक्ट्री में कंगन में नग लगाने का काम करता था। उसे 40 रुपये रोजाना मिलता था। वैशाली के रहमत अली को यह कहकर दलाल ले गया था कि उसे मदरसा में पढ़ाया जाएगा और साथ में ही अपने खर्च के लिए कुछ काम कर लेगा।

कौन है सेठ?

बाल मजदूरी से मुक्त हुए अधिकांश बच्चे सेठजी द्वारा नौकरी पर भेजे जाने की बात कह रहे थे। सेठ पहले बच्चों के माता-पिता को इलाज अथवा अन्य कार्यो के लिए हजार-दो हजार रुपये कर्ज देता है। उस राशि पर सूद इतना तेजी से बढ़ने लगता है कि हारकर उन्हें अपने बच्चों को सेठ के हवाले करना पड़ता है। सेठ सारे बच्चों को जयपुर अथवा भदोही भेज देता है। बच्चों का वेतन सेठ के ही बैंक खाते में आता है। सेठ मनमानी रकम निकालकर उनके मां-बाप को सौंप देता है। सेठ का पूरा नाम सनौव्वर है जो गया जिले के दरियापुर गांव का एक दबंग है। पिछले 20 वर्षो से वह इसी पेशे में है। अब तक इस क्षेत्र के हजारों बच्चों को बाहर नौकरी करने भेज चुका है।


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