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गुनाहों की माफी का महीना है रमजान

By Edited By: Published: Mon, 30 Jun 2014 10:26 AM (IST)Updated: Mon, 30 Jun 2014 10:26 AM (IST)
गुनाहों की माफी का महीना है रमजान

फुलवारी शरीफ : मुसलमानों का पवित्र माह रमजान शुरू हो गया है। पहला रोजा सोमवार को है। शहर की विभिन्न मस्जिदों में रमजान के महीने पर अदा की जाने वाली तरावीह की नमाज के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। कहीं 5, कहीं 6, कहीं 10, और कहीं 15 दिनों की तरावीह की नमाज का आयोजन किया गया है। इसके साथ ही अन्य जगहों पर भी तरावीह की नमाज अदा करने की व्यवस्था की गई है। रमजान का माह सबसे पवित्र माना जाता है। इस माह में लोग रोजा रखते हैं, और इबादत करते हैं। इस माह में गुनाहों की माफी होती है, और अल्लाह रहमतों का दरवाजा आपने बंदों के लिए खोल देता है। रोजा का अर्थ तकवा है। इंसान रोजा रख कर अपने आप को ऐसा इंसान बनने का प्रयास करता है, जैसा उसका रब चाहता है। तकवा यानी अपने आप को बुराइयों से बचाना, और भलाई को अपनाना है। रोजा केवल भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं है। रोजा इंसान के हर एक भाग का होता है। रोजा आंख का है, मतलब बुरा मत देखो। गलत बात न सुनो। मुंह से अपशब्द न निकले। हाथ से अच्छा काम ही हो। पांव सिर्फ अच्छाई की राह पर चले। अल्लाह को किसी को भूखा प्यासा रखने से कोई मतलब नहीं है, बल्कि वह इंसान से वह सारे अमल कराना चाहता है, जिसे करने को उसने हुक्म दिया है। इसलिए बुराई से बचने और भलाई के रास्ते पर चलने का नाम रोजा है।

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इमारत-ए-शरिया के नायब नाजिम मौलाना सोहैल अहमद नदवी ने कहा कि रोजा इस्लाम के पांच अरकान में से ऐसा रुक्न है। अगर कोई मुसलमान एक रोजा भी बगैर किसी कारण छोड़ दे तो वह पूरी जिंदगी रोजा रख कर भी उस एक रोजा का उसबाब नहीं पा सकता है। एक दूसरों के साथ हमदर्दी रखनी चाहिए। उसके दुखदर्द में शामिल होना चाहिए। इसका बड़ा सबाब है। इस महीना का सम्मान केवल मुसलमानों को ही नहीं, बल्कि तमाम इंसानों को करना चाहिए।


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