..जहा मृत मछलियों को मिलता है कफन
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर(औरंगाबाद) आस्था के कारण ही इंसान पत्थर पूजता है। इसके आगे न कोई तर्क चलता है न बहस की गुंजाइश बचती है। बिरई से चौरी जाने के क्रम में सिमराबाग से पहले एक पोखरा है। इसका धार्मिक महत्व है। चौरी की मुखिया ललिता देवी के पति डा.राजकुमार सिंह एवं भाजपा के पंचायत अध्यक्ष सत्येंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि इस पोखरा से मछली नहीं मारी जाती है। जब तालाब की कोई मछली मर जाती है तो उसको कफन दिया जाता है। दफनाया जाता है। यह गाव की परंपरा पिछले कई वर्षो से चली आ रही है। बुजुर्ग छोटेनारायण शर्मा एवं कमलेश यादव ने बताया कि इस पोखरा की यही विशेषता एवं महत्व है। पोखरा 70 से 80 साल पुराना है। ग्रामीणों के अनुसार सिमराबाग के सूरदास नागा बाबा यहा रहते थे। वे जन्मान्ध थे। भूमिगत कुटिया में रहते थे। इसी पोखरा से मछली मारने वाले एक व्यक्ति को पकड़ लिया था। यह उनका प्रताप था। पोखरा से ग्रामीणों की याद में कोई मछली नहीं मारता। अगर कोई मछली मर जाती है तो लोग अंतिम संस्कार करते हैं। पास में ही बाबा की समाधिस्थल है। अब जब यहा सूर्य मंदिर बन गया है और महायज्ञ की तैयारी चल रही है। पोखरा का भी भाग्योदय हो रहा है। मुखिया ललिता देवी मनरेगा योजना से करीब पाच लाख की राशि से घाट का निर्माण दो तरफ करा रही हैं। दो तरफ बिना सीढी का पक्का निर्माण हो रहा है। डा.राजकुमार ने बताया कि पोखरा के चारों तरफ ईट सोलिंग लगाया जा रहा है। यहा बैठने के लिए पक्का निर्माण एवं सौन्दर्यीकरण के कार्य बाद में किए जाएंगे।