फोटो-अपने हुए बेगाने तो बुढ़ापे में भी नहीं मानी हार
सरकारी-गैर सरकारी संगठनों के तमाम प्रयास बावजूद बागवान को आज भी अपने बाग की छांव नहीं मिल रही है।
नवादा। सरकारी-गैर सरकारी संगठनों के तमाम प्रयास बावजूद बागवान को आज भी अपने बाग की छांव नहीं मिल रही है। यह पंक्ति हिसुआ के वार्ड 17 स्थित नाई टोला निवासी कैलाश ठाकुर पर बिल्कुल चरितार्थ हो रहा है। परिवार के सदस्य बेगाने हो गए तो उन्होंने पारंपरिक पेशा को सहारा बना लिया। तीन बेटों के 85 वर्षीय पिता कैलाश आज अपना और अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए कांपते हाथों से गलियों में घूम-घूमकर दूसरों के दाढ़ी बनाते हैं। फिर इससे जो आमद होती है उससे घर चलाते हैं। ऐसा नहीं कि बेटों की स्थिति अच्छी नहीं है। अच्छी कमाई के बावजूद इस वृद्ध दंपती पर कोई ध्यान नहीं देता है। वैसे बड़ा बेटा तो जवानी में ही काल के गाल में समा गया। बड़ी बहू आशा कार्यकर्ता हैं और पोता सीताराम साहू कॉलेज में आदेशपाल है। मंझला बेटा प्राथमिक विद्यालय में प्रधान शिक्षक हैं तो छोटा बेटा झारखंड में प्राइवेट जॉब करता है। कैलाश अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहते हैं कि जिस आशा और जिज्ञासा से अपने बच्चों को पालन-पोषण किया उसका यह फल मिल रहा है। कभी-कभार छोटा बेटा ही कुछ खर्चा भेज देता है और जो मैं कमाता हूं, उससे हम पति-पत्नी का गुजारा होता है। मंझला बेटा शंभू शर्मा अलग घर बनाकर अपने बीवी-बच्चों के साथ रहता है और किसी प्रकार का मेरा कोई खर्च नहीं उठाता। बड़ी बहू व पोते का भी साथ नहीं मिलता है। ऐसे में हम कमाएंगे नहीं तो खाएंगे कहां से? कांपते हाथों से कोई अपनी दाढी नहीं बनवाना चाहता, पर हमारी लाचारी देख लोग मुझे बुला लेते हैं। लाठी के सहारे चलने वाले वृद्ध कैलाश का शरीर खुद इतने सामर्थय्वान नहीं कि घूम-घूम कर काम कर सकें। लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने कहा लाल कार्ड पर अनाज मिलता था पर वह भी चार साल से वह भी बंद है। सारा समान बाजार से खरीदकर खाना होता है। वार्ड 17 के पूर्व पार्षद पवन कुमार गुप्ता ने बताया कि काफी प्रयास के बाद इनका लाल कार्ड बनवाया था। पर चार वर्षों से लाल कार्ड पर अनाज मिलना बंद हो गया तो इन्हें इसका लाभ नहीं मिल रहा है।