कागजों पर जलश्रोतों की भरमार, कृषि अब भी वर्षा पर निर्भर
जिले में कागजों पर जलश्रोतों की भरमार होने के बावजूद किसान वर्षा आधरित खेती पर निर्भर हैं। कहने को तो जिले में 2900 जलश्रोतों के माध्यम से किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था है, लेकिन सच्चाई कुछ और बयां करती है।
बेगूसराय। जिले में कागजों पर जलश्रोतों की भरमार होने के बावजूद किसान वर्षा आधरित खेती पर निर्भर हैं। कहने को तो जिले में 2900 जलश्रोतों के माध्यम से किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था है, लेकिन सच्चाई कुछ और बयां करती है। सभी जलश्रोत वर्षा पर आधारित है। अच्छी बारिश के बाद ही खेतों तक आहर,पईन व जलाशयों के माध्यम से पानी पहुंच पाता है। और बारिश है कि होने का नाम ही नहीं ले रही है। दूसरी स्थिति ये भी कि नदी-नालों के साथ पईन-आहर पर अतिक्रमण से भी जलश्रोत सिकुड़ता जा रहा है।
मृगशिरा नक्षत्र समाप्त होने को है। जून आधा कब का समाप्त हो चुका है, लेकिन अबतक बारिश के दूर-दूर तक आसार नजर नहीं आ रहे हैं। उपर से चिलचिलाती घूप से हर कोई परेशान है। खेतों में धान के बिचड़े डालना तो दूर तैयारी तक आरंभ नहीं की गई है। कारण स्पष्ट है, खेतों में नमी का अभाव। भूगर्भीय जलस्तर का लगातार नीचे जाना व तापमान में वृद्धि से किसान चाहकर भी खेतों में बीज डालने से परहेज कर रहे हैं।
कभी सकरी नदी पर पौरा के पास बना नहर के माध्यम से शेखपुरा व नालंदा जिला तक की खेती को आवाद करता था। आज इसके ¨सचाई का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। वर्षा जल का संचय कर उसे खेतों तक पहुंचाने के लिए रजौली के फुलवरिया व जौब जलाशय ,गोविन्दपुर का कोल महादेव व पुरैनी के साथ ही कौआकोल का ताराकोल में जलाशय का निर्माण करा नहरों के माध्यम से खेतों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गई थी। लेकिन पूरी व्यवस्था मॉनसून की वर्षा पर निर्भर है। जलाशयों से एकस्तर तक पानी संग्रह होने के बाद ही इसे छोड़ा जा सकता है। वैसे जिले का सबसे बड़ा जलाशय फुलवरिया है जहां 562 मीटर जलसंग्रह के बाद ही पानी खेतों तक छोड़ा जा सकता है।
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सकरी-नाटा नदी जोड़ योजना अधर में
- अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जिले के अपर सकरी योजना को बंद कर सकरी-नाटा नदी जोड़ योजना की घोषणा की थी। केन्द्र व बिहार में अलग-अलग सरकार रहने के कारण योजना अधर में लटकी पड़ी है।
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अतिक्रमण का शिकार
- जलाशयों से खतों तक पानी पहुंचाने के लिए बनाई गई नहरें कई स्थानों पर अतक्रिमण का शिकार होकर रह गई है। कुछ इसी प्रकार की स्थिति आहर व पईन की भी है। ऐसे में खेतों तक पानी पहुंच पाना मुश्किल होता जा रहा है। विभागीय आंकडों में जिले में 2900 से भी अधिक आहर व पईन आदि हैं। लेकिन इनमें से आधे का अस्तित्व अतक्रिमण के कारण समाप्त हो चुका है।
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कृषि कार्य है ठप
-जिले में हालात यह है कि एक ओर भूगर्भीय जलस्तर में लगातार गिरावट जारी है तो दूसरी ओर मॉनसून की बारिश के इंतजार में किसान अबतक खेतों में धान की बीज तक नहीं गिरा पा रहे हैं। जिससे खेती पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। अबतक जनवरी से 17 जून तक मा़त्र 12 मिलीमीटर वर्षा होने से खेतों में दरारें पड़ी है और बगैर बारिश खेतों की जुताई संभव नहीं है। ऐसे में किसानों की बेचैनी बढ़ी हुई है।