तंत्र के गण : 'इस शरीर के खून पर सिर्फ अपना अधिकार नहीं'
वर्ष 2005 की बात है। पटना में जापान की संस्था रेहुकाई के एक सदस्य दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। चिकित्सक ने खून की आवश्यकता जताई। काफी खोजबीन शुरु हुई, लेकिन कोई नहीं मिला।
नवादा। वर्ष 2005 की बात है। पटना में जापान की संस्था रेहुकाई के एक सदस्य दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। चिकित्सक ने खून की आवश्यकता जताई। काफी खोजबीन शुरु हुई, लेकिन कोई नहीं मिला। तब वहां मौजूद रहे नारदीगंज के ओड़ो पंचायत की पूर्व मुखिया अर¨वद मिश्रा को पता चला कि खून के अभाव में दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति जीवन-मौत से जूझ रहा है। तुरंत पूर्व मुखिया की संवेदना जगी और उपवास में रहने के बावजूद वे खून देने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद उन्होंने रक्तदान कार्यक्रम को अपने जीवन में ही शामिल कर लिया और प्रतिवर्ष 1 जनवरी को सदर अस्पताल में रक्तदान करने लगे। उनकी पत्नी चंचला मिश्रा भी पीछे नहीं रहीं और पति का साथ देते हुए रक्तदान के पुनीत कार्य में जुट गईं। इतना ही नहीं, बीच में भी किसी मरीज के बारे में जानकारी मिली तो खून देकर जान बचाने में तनिक नहीं हिचके। छह साल पहले सदर अस्पताल में एक दलित महिला खून के अभाव में जीवन-मरण की शैया पर थी। इसकी जानकारी मिलते ही अर¨वद पहुंचे और खून देकर महिला की जान बचाई। अब तक पूर्व मुखिया स्वयं करीब 30 बार रक्तदान कर चुके हैं और उनकी पत्नी भी 6 बार खून दे चुकी हैं। मिश्रा दंपती कहते हैं कि मीडिया में खून की कमी के चलते लोगों की मौत की खबर काफी चुभन देती थी। छात्र जीवन से ही सामाजिक कार्यों से जुड़े रहने के कारण रक्तदान कर जरुरतमंदों की जान बचाने में काफी सुकून मिलता है। श्रीमिश्रा कहते हैं खून के अभाव में किसी मरीज की मौत हो जाए, यह काफी दुखद है। सभी लोगों को आगे आकर देश के वीर सैनिकों, गरीबों, शोषितों आदि के लिए अपना खून देना चाहिए। रक्तदान महादान है।