साहब, मेरा नम्बर आया है क्या..
संवाद सूत्र, पकरीबरावा (नवादा): सरकार की योजना है हम लेकर ही रहेगें, चाहे जितनी बार लैटना पड़े। न
संवाद सूत्र, पकरीबरावा (नवादा):
सरकार की योजना है हम लेकर ही रहेगें, चाहे जितनी बार लैटना पड़े। नाजायज एक फूटी कौड़ी देने वालों में नहीं हैं हम। ऐसा ही कुछ बया कर रहा है दोनों पैर से विकलाग धेवधा गाव का 30 वर्षीय बजरंगी लाल माझी।
प्रखंड मुख्यालय से धेवधा की दूरी लगभग छ: किलोमीटर है। दोनों पैर से विकलाग बजरंगी खुद चलकर प्रखंड कार्यालय आता है और दिनभर भुखे-प्यासे इंतजार कर शाम को घर वापस चला जाता है। वह कहता है कि मुझे आज तक किसी भी प्रकार का कोई लाभ नहीं मिला है। मैंने सुना कि हम जैसे लोगों के लिए सरकार की कई योजनाएं है। लाभ के लिए पहले तो कई बार आवेदन प्रखंड कार्यालय में दिया। पंचायत शिविर में भी आवेदन दिया, परन्तु आज तक किसी भी प्रकार कोई लाभ नहीं मिला। मैं इसके लिए प्रखंड कार्यालय से लेकर स्वास्थ्य केन्द्र तक गया पर कहीं कुछ नहीं होता है। बस सिर्फ एक ही चीज होती है कि यहा से ठोकर वहा की मिलती है और वहा से ठोकर यहा की मिलती है। हर जगह कर्मी पहले तो देखते हैं और फिर अपना नाक-भौं सिकुड़ा लेते हैं। परन्तु मैं कर भी क्या सकता हूं। इन साहबों को खुश करने के लिए मेरे पास कुछ है ही नहीं। मेरे पास दुआएं देने के अलावा कुछ भी नहीं है। परन्तु ये बाबू क्या समझेगें कि दुआ क्या होती है । इन्हें तो सिर्फ ..।
वह अपनी दबी जुबान से कहता है कि अगर साहबों के पास जरा सी भी इंसानियत होती तो शायद अभी तक हम नहीं भटकते और आज हम अपने रिक्शा से आते-जाते। पेंशन सहित अन्य लाभ भी मिल गए होते।