पथ की जर्जरता सैलानियों के लिये बाधक
संवाद सहयोगी,नवादा: जिले के ऐतिहासिक शीतल जल प्रपात ककोलत के विकास में पर्यटन विभाग की रूचि नहीं है। ककोलत महोत्सव को पर्यटन विभाग में शामिल तो किया गया,लेकिन सरकारी स्तर पर आजतक इसका आयोजन नहीं किये जाने से जिले के नागरिक अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं।
ककोलत आने से अब देशी-विदेश्री सैलानी परहेज करने लगे हैं। 14 अप्रैल से आरंभ हुआ विशुआ मेला इसका ज्वलंत उदाहरण है। अबतक देशी-विदेशी पर्यटकों के नहीं आने से मेले की सौन्दर्यता समाप्त होने लगी है। थाली से ककोलत तक पांच किलोमीटर जर्जर पथ पर सफर कराना जोखिम भरा काम है। कब,कहां वाहन खराब हो जाये कहना मुश्किल है। ऐसे में कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं। और तो और वर्ष 2008 में पानी की उग्रधारा से ध्वस्त हुई सीढि़यों की मरम्मत नहीं होने से जलप्रपात तक पहुंचना जान को जोखिम में डालने से कम नहीं।
वैसे जिला प्रशासन व वन विभाग ने वर्ष 2008 से ही जलप्रपात को असुरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है। बावजूद खुद जिला प्रशासन ही इसका अनुपालन नहीं कर रही है। मंत्री से लेकर अधिकारी तक बिहार का कश्मीर ककोलत जलप्रपात पर स्नान का आनन्द लेने से बाज नहीं आ रहे हैं। फिर भी सड़क व सीढ़ी मरम्मति की चिन्ता किसी को नहीं है। जिससे लगातार सैलानियों के आने की संख्या में कमी होती जा रही है।