फिक्रमंदों की जुगलबंदी से विपरीत गांव के हालात
नालंदा। सरकार कहती है कि गांवों की तस्वीर बदली है, लोगों के हालात सुधरे हैं। लोग खुशह
नालंदा। सरकार कहती है कि गांवों की तस्वीर बदली है, लोगों के हालात सुधरे हैं। लोग खुशहाल ¨जदगी जी रहे हैं, पर फिक्रमंदों की जुगलबंदी से यहां के हाताल बिल्कुल विपरीत हैं। चंडी प्रखंड के अधिकांश गांव विकास से कोसों दूर है। यहां विद्यालयों से शिक्षा गायब तो नलकूपों से जल गायब है। स्वास्थ्य सेवाओं का यहां पर तो नामों निशान ही नहीं है। क्या इन्हीं के बल पर हमारे माननीय विकास की बात कर रहे हैं। खुद वातानुकूलित भवन में रहने वाले हमारे पालनहारों को गांव की सुध लेने की फुर्सत नहीं है। वे संसद व विधान सभा में बैठकर गांव की प्रगति का आंकलन करते हैं। गांवों के विकास के लिए योजनाएं चलाई जाती है लेकिन इन योजनाओं के पैसे कहां चले जाते हैं किसी को पता नहीं। हमने कभी सोचा भी नहीं था कि इस आजाद भारत में गांव की ऐसी तस्वीर भी सामने आएगी। आजाद भारत के नागरिक होने के बावजूद गांव के लोगों को आजाद भारत का एहसास नहीं है। गांव में कच्चे मकान, कीचड़ युक्त रास्ते, चूल्हे से उड़ते धुएं के गुब्बारे। क्या ये तस्वीर हमारी इक्कीसवी सदी के भारत की है। कभी देश की तकदीर गांव गढ़ता था पर आज गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी आदि ने गांव से सुख चैन छिन लिया है। इन तस्वीरों से भिन्न नहीं है चंडी प्रखंड के तुलसीगढ़ पंचायत के रसलपुर गांव की हालात। आजादी के 70 साल बाद देश के हालात बदले लेकिन नहीं बदले समाज और न बदली इन गांवों की दुर्दशा। इस गांव में प्रवेश करने के लिए लगभग डेढ़ किलोमीटर कच्ची सड़क जो कीचड़युक्त और इसी कच्ची सड़क पर गंदगी से भरा है। जबकि इस गांव की आबादी 500 से ज्यादा है। इस गांव में एक बड़ी संख्या में महादलित लोगों की हैं। स्कूल जाने लिए भी पगडंडी का सहारा बच्चों को लेना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में स्वच्छ पेयजल का भी व्यवस्था नहीं है। मात्र तीन चापानलों के सहारे लोग अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं। गांव में एक भी सामुदायिक भवन नहीं रहने के कारण बच्चियों की शादी में काफी कठिनाइयों का सामना यहां के निवासी करते हैं। बीपीएल सूची में नाम दर्ज नहीं होने से लोगों को इंदिरा आवास का लाभ नहीं मिल पाया है। इस गांव में ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं। लोगों को मनरेगा में काम नहीं मिलने के कारण वे गांव से पलायन को मजबूर हैं।
क्या कहते है ग्रामीण
गांव की महिला गोरख देवी ने कहा कि गांव में पक्की सड़क एक तरह का सपना सा हो गया है। न हमलोगों को इंदिरा आवास मिल रहा है न ही स्वच्छ पेयजल मुहैया कराया जा रहा है।
सोना देवी कहती हैं कि रहने के लिए घर भी नहीं है और न ही घर बनाने के लिए जमीन। मनरेगा में मजदूरी नहीं मिलने के कारण बाहर कमाकर बच्चों को जैसे-तैसे भरण-पोषण कर रहे हैं।
क्या कहते हैं उप मुखिया
रसलपुर गांव के ही निवासी मंटू कुमार ने कहा कि सबसे पहला लक्ष्य गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ना है। स्वास्थ्य समस्या की दूर करना, स्वच्छ पेयजल मुहैया करना, गरीब लोगों को वृद्धापेंशन, विकलांग पेंशन दिलवाना मेरा मुख्य एजेंडा है।
गांव के पंच लक्ष्मण ने बताया कि गांव में सामुदायिक भवन नहीं रहने के कारण बच्ची की शादी करने में काफी कठिनाई होती है। हमलोगों को अभी तक इन्दिरा आवास भी नहीं मिल पाया है। सरकार को चाहिए कि गांव के महिलाओं को ट्रे¨नग देकर रोजगार मुहैया कराये।
मुखिया की बातें
मुखिया मणिकांत कौशल का कहना है कि अपने पंचायत को उंचाई पर ले जाने के लिए मैं कटिबद्ध हूं। पंचायत के सभी गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ने का प्रयास करूंगा। पंचायत के गांवों में सबसे पहले नाली और गली को प्राथमिकता दी जाएगी। प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत सभी गरीबों को आवास मुहैया कराया जाएगा। गांवों को स्वच्छ बनाने के लिए लोगों को जागरूक किया जाएगा।