..आखिर अपनी जिद को दी जीत की शक्ल
नालंदा। इतिहास फिर गवाह बना हमारी आत्मशक्ति का, हमारे ²ढ़ निश्चय का तथा हमारे निरंतर प
नालंदा। इतिहास फिर गवाह बना हमारी आत्मशक्ति का, हमारे ²ढ़ निश्चय का तथा हमारे निरंतर प्रयास व समर्पण का। अंतरराष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय की अनुशंसित भूमि पर 262 फीट लंबे पांडल में लगी कुर्सियों पर बैठे हजारों की भीड़ से निकलने वाली तालियों की गड़गड़ाहट हमारी ऐतिहासिक जीत को जीवंत कर रहे थे। तालियों की ये गड़गड़ाहट विश्वविद्यालय निर्माण के हौसले को गति दे पाएंगे और इससे हमारा कदम भी हर पल सार्थकता की ओर बढ़ सकेगा। विश्वविद्यालय हमारे अंतरराष्ट्रीय सहयोग का ही परिणाम है। इससे न केवल देश-दुनिया की शैक्षणिक प्रणाली दुरुस्त होगी बल्कि इससे दूसरे राष्ट्रों के साथ हमारा संबंध भी प्रगाढ़ हो पाएंगे। राष्ट्रीय धुन बजने के साथ ही देश दुनिया के हजारों सम्मानीय लोगों ने जिस सम्मान के साथ हमारे देश का नमन किया वो हमारी शैक्षणिक शक्ति का एहसास कराने के लिए काफी था। आठ सौ वर्षों बाद हमने अपनी जिद को जीत की शक्ल दी। खुद हमारे महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आत्मशक्ति को परिवर्तन का सबसे बडा हथियार बताया। उन्होंने कहा कि नाकासाकी व हिरोशिमा ने विध्वंस के बाद पुनर्निर्माण का कार्य पूरा कर पूरे जगत के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया।
नालंदा विश्वविद्यालय धर्मनिरपेक्षता का सबसे बड़ा केन्द्र कहा जा सकता क्योंकि इसने समस्त धर्मावलंबियों के लिए जगह बनाई है तथा उसका सम्मान किया है। दीक्षा समारोह के माध्यम से हमने जीत के प्रति अपना कदम बढ़ाया है पर चुनौतियां आज भी बरकरार है। राज्य सरकार द्वारा अनुदान के तौर पर 443 एकड़ भूमि जरूर प्रदान की गई है पर आर्थिक चुनौतियां आज भी सामने हैं। दो बार आधारशिला कार्यक्रम होने के बावजूद निर्माण कार्य आरंभ नहीं हो पाना ¨चता का विषय है। हमारे नीतीश कुमार बातों ही बातों में निर्माण कार्य की धीमी गति पर नाराजगी भी जाहिर कर विश्वास दिलाई कि शिक्षा के विकास के लिए उठने वाले हर कदम को बिहार शक्ति प्रदान करेगा। डॉ. अब्दुल कलाम का सपना आज साकार हो चुका है बावजूद चुनौतियां कम नहीं है।