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ओम नम: शिवाय,बाबा दूधनाथ मंदिर

जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी पूरब मनिका चौक से करीब तीन किमी की दूरी पर स्थित छपरा मेघ गांव में बाबा दूधनाथ मंदिर सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है।

By Edited By: Published: Tue, 26 Jul 2016 02:18 AM (IST)Updated: Tue, 26 Jul 2016 02:18 AM (IST)
ओम नम: शिवाय,बाबा दूधनाथ मंदिर

मुजफ्फरपुर। जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी पूरब मनिका चौक से करीब तीन किमी की दूरी पर स्थित छपरा मेघ गांव में बाबा दूधनाथ मंदिर सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है। इसकी महत्ता को देखते हुए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने इस मंदिर को बिहार राज्य मेला प्राधिकार के अंतर्गत शामिल किया है।

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मंदिर का इतिहास

मंदिर की स्थापना कब हुई, इसकी सही जानकारी किसी के पास नहीं है। ग्रामीणों की मानें तो यह मंदिर करीब एक हजार वर्ष पुराना है। वर्षो पूर्व जब पोखर की खुदाई हो रही थी तो किसी पत्थर से कुदाल टकराया। वहां से दूध की धारा बह निकली। जब देखा गया तो पाया कि वहां शिवलिंग था। स्थानीय लोगों ने यहां मंदिर की स्थापना की। तब से इन्हें लोग बाबा दूधनाथ के नाम से जानने लगे। यहां साल में दो बार महाशिवरात्रि और श्रावण मास की चारों सोमवारी को मेला लगता है। मुखिया रंजन कुमार सिंह, मथुरा सिंह, राजेश शर्मा, रामकुमार शर्मा आदि बताते हैं कि यहां सावन में हजारों कांवरिया पहलेजा से जल लाकर बाबा का जलाभिषेक करते हैं। सावन व महाशिवरात्रि सहित विशेष अवसरों पर पूजा के लिए काफी लोग जुटते हैं। सावन की चारों सोमवारी के दिन बाबा का महाश्रृंगार होता है। मंदिर के आसपास पेड़ पर हजारों की संख्या में में बादुर (चमगादड़) रहते हैं। उन्हें बाबा के गणदूत के रूप में जाना जाता है। इसीलिए इस गांव को बादुर छपरा भी कहा जाता है।

बयान

ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर परिसर में संपन्न विवाह का बंधन अटूट होता है। इसीलिए काफी दूर-दूर से लोग यहां आकर अपने सगे संबंधियों का विवाह संपन्न कराते हैं। इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।

- पं.बलभद्र झा, पुजारी

बाबा की महिमा अपार है। वे सबकी सुनते हैं। इस मंदिर में कोई झूठी कसम नहीं खाता। ऐसे कई साक्ष्य हैं जिसमें झूठी कसम खाने वालों को उसका परिणाम भुगतना पड़ा।

-शंकर प्रसाद सिंह, ग्रामीण


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