पांच साल बाद छात्रा को मिला न्याय
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में मेधावी छात्र- छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है। इसकी बानगी लता कुमारी की कहानी से मिलती है।
मुजफ्फरपुर। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में मेधावी छात्र- छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है। इसकी बानगी लता कुमारी की कहानी से मिलती है। दुर्भाग्य ने पांच साल तक पीछा किया। अंत में निर्णय उसके हक में हुआ। औसत अंक देकर इतिहास ऑनर्स में उसे उत्तीर्ण घोषित किया गया।
गुम होती रही हैं कॉपियां
विश्वविद्यालय में लाखों उत्तर पुस्तिकाओं में हजारों का गुम होना उसमें से कुछ का मिलना और नहीं मिलना हर सत्र में होता रहता है। बदकिस्मत ही ऐसे होते हैं जिनकी उत्तर पुस्तिका गुम होती है। लता कुमारी भी ऐसी ही दुर्भाग्यशाली छात्रा रही।
देरी से निकला रिजल्ट
वर्ष 2011 में लता कुमारी ने इतिहास ऑनर्स में परीक्षा दी थी। सत्र काफी विलंब से चल रहा था। लिहाजा रिजल्ट भी देर से जारी हुआ।
टीआर में अंक नहीं था
रिजल्ट पेंडिंग होने को लेकर 2014 -15 तक विश्वविद्यालय में चक्कर लगाती रही। लेकिन, कोई नतीजा नहीं निकला। बाद में जानकारी हुई कि उसके छठे पेपर की उत्तरपुस्तिका का अंक टेबुलेशन रजिस्टर में अंकित नहीं है।
विशेषज्ञों की कमेटी बनी
अंत में वह प्रतिकुलपति डॉ. प्रभा किरण से मिली। उन्हें आवेदन दिया गया। उन्होंने सूचना के अधिकार में उत्तरपुस्तिका निकालने का निर्देश दिया। प्रक्रिया पूरी होने के एक माह बाद उसकी कॉपी गुम होने के कारण नहीं मिल पाई। मामले में परीक्षा बोर्ड की बैठक हुई और प्रति कुलपति की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की समिति बनी जिसमें गणित विभाग के प्रोफेसर व अध्यक्ष डॉ. विद्यापति सिंह, प्रोफेसर केएस झा एवं कामर्स विभाग के डीन डॉ. रघुनंदन शर्मा थे।
और हो गई उत्तीर्ण
समिति ने अन्य प्रश्नपत्रों की उत्तरपुस्तिकाओं में प्राप्त अंक टीआर में देखा और उसी आधार पर औसत अंक दिया गया। इस रिजल्ट में वह उत्तीर्ण हो गई।
उठा सवाल
लेकिन, पांच साल बाद मिला उसे न्याय देर आए दुरुस्त आए के मुहावरे को मुंह चिढ़ा रहा है। सवाल है कि उसके कॅरियर के लिए जो पांच साल बर्बाद हुए उसका कौन जिम्मेदार होगा।