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निजीकरण का विरोध, सरकार के लिए क्रोध

निजीकरण का प्रयास एवं श्रम अधिनियमों में संशोधन के खिलाफ शुक्रवार को बैंकों में हड़ताल रही। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के बैनर तले विभिन्न बैंकों ने केंद्र सरकार के विरोध में प्रदर्शन किया। नारे लगाए।

By Edited By: Published: Sat, 30 Jul 2016 01:57 AM (IST)Updated: Sat, 30 Jul 2016 01:57 AM (IST)
निजीकरण का विरोध, सरकार के लिए क्रोध

मुजफ्फरपुर। निजीकरण का प्रयास एवं श्रम अधिनियमों में संशोधन के खिलाफ शुक्रवार को बैंकों में हड़ताल रही। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के बैनर तले विभिन्न बैंकों ने केंद्र सरकार के विरोध में प्रदर्शन किया। नारे लगाए। इससे अरबों रुपये का कारोबार प्रभावित हुआ। ग्राहकों को काफी परेशानी हुई। निजी बैंकों को भी जबरन बंद कराया गया। एटीएम सेवा को भी प्रभावित किया गया।

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बैंक ऑफ इंडिया अंचल कार्यालय, भारतीय स्टेट बैंक अंचल कार्यालय एवं पीएनबी मंडल कार्यालय समेत कई बैंकों से रैली व जुलूस निकाला गया। वक्ताओं ने केंद्र सरकार की नीति को गरीब विरोधी एवं पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने वाला बताया। वक्ताओं ने कहा, बैंकों का निजीकरण एवं विलय देश की गरीब जनता के विरुद्ध पूंजीपतियों की बड़ी साजिश है। सरकारी बैंक गरीबों को रोजगार के लिए छोटे ऋण देते हैं। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का शून्य राशि पर खाता खोलते हैं। आर्थिक रूप से कमजोरों के हित में कई ऐसे काम किए जाते हैं, जो निजी बैंक नहीं कर सकते। निजी बैंक सिर्फ बड़े पूंजीपतियों को ही ऋण देंगे। अधिकतर पूंजीपति ऋण वापस नहीं करते। आंदोलन में पीएनबी के अशोक कुमार श्रीवास्तव, एसबीआई के टुनटुन बैठा, मिथिलेश कुमार, अजय कुमार सिंह, पीएनबी के उत्तम कुमार, इलाहाबाद बैंक के शशिकुमार सिंह, रामकुमार सिंह, सौरभ कुमार, यूएफबीयू के पूर्व कन्वेनर अशोक ठाकुर आदि मौजूद थे।

यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के पूर्व संयोजक डॉ. विनोद प्रसाद ने कहा कि बैंकों के निजीकरण का प्रयास 1991 से ही किया जा रहा है। परंतु बाजपेयी सरकार के वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा के समय बैंकों में सरकारी पूंजी 50 फीसद से कम कर निजीकरण का प्रयास किया गया था। उसे आंदोलन व संसद में विपक्षी दलों के दबाव के कारण संसद की स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया जो सरकार के हटने के कारण खुद खत्म हो गया। बाजपेयी ने भी बैंक राष्ट्रीयकरण के समय संसद में जनसंघ के सांसद के रूप में राष्ट्रीयकरण का विरोध किया था। बैंक विलय एवं एनपीए रिकवरी के लिए ठोस कदम नहीं उठाया जाना बैंक विरोधी एवं किसान विरोधी है।


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