'गौण हो रहे शाश्वत मूल्य'
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर : जीवन में शाश्वत मूल्य परिहार्य होते हैं। आज देश में भौतिक मूल्यों को त
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर : जीवन में शाश्वत मूल्य परिहार्य होते हैं। आज देश में भौतिक मूल्यों को तरजीह दी जा रही है, जिससे शाश्वत मूल्य गौण पड़ते जा रहे हैं। भौतिक मूल्य व्यक्ति, समाज व राष्ट्र तीनों के लिए घातक हैं। उक्त बातें विवि हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार सिंह ने शुक्रवार को सीनेट हॉल में बीआरए बिहार विश्वविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षक संघ द्वारा आयोजित 'शाश्वत जीवन मूल्य' पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कई उदाहरणों के माध्यम से बताया कि परिस्तिथियों के अनुसार मूल्यों में परिवर्तन होता है, लेकिन शाश्वत मूल्य अपरिवर्तित होते हैं। इनमें जीवन के लिए संजीवनी शक्ति निहित होती है। इन्हीं मूल्यों का परिणाम है कि भारतीय सभ्यता व संस्कृति अविछिन्न है। अध्यक्षता कर रहीं प्रतिकुलपति डॉ. प्रभा किरण ने शाश्वत मूल्यों के प्रति समर्पण के साथ ही उसके अनुशरण पर बल दिया। सीसीडीसी डॉ. तारण राय ने इस प्रासंगिक और उपयोगी विषय पर श्रृंखलाबद्ध आयोजन करने की राय दी। संचालन संस्कृत विभाग के प्राध्यापक डॉ. मनोज कुमार व धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने किया। मौके पर संघ के उपाध्यक्ष डॉ. शिवदीपक शर्मा, संगठन मंत्री डॉ. लक्ष्मेश्वर ठाकुर, सह संगठन मंत्री प्रमोद कुमार, डॉ. वीरेंद्र झा, राजकुमार सिंह, डॉ. त्रिविक्रम नारायण सिंह, सीनेटर प्रो. अरुण कुमार सिंह, सुनील कुमार, मुरारी झा आदि उपस्थित थे।
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कुलपति के नहीं आने से रोष
संगोष्ठी में कुलपति डॉ. पंडित पलांडे के नहीं आने पर शिक्षक नेताओं ने रोष व्यक्त किया है। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षक संघ के संगठन मंत्री लक्ष्मेश्वर ठाकुर ने कहा कि कुलपति संगठन के प्रति दोहरी नीति रखते हैं। उन्होंने कार्यक्रम की अध्यक्षता की स्वीकृति दी थी। बावजूद इसके उनकी उपस्थिति नहीं होना, उनके पक्षपातपूर्ण रवैये को स्पष्ट करता है। विवि के शैक्षणिक गतिविधियों से उनका कोई सरोकार नहीं है। ऐसे कुलपति कभी भी शिक्षकों के प्रति न्यायोचित फैसले नहीं ले सकते। कुलपति संगठन द्वारा दिए गए प्रतिवेदन को भी दरकिनार करते हैं। वहीं सीनेटर अरुण कुमार सिंह ने कहा कि अखिल भारतीय स्तर के शिक्षक संगठन के शैक्षणिक कार्यक्रम में कुलपति का शामिल नहीं होना खेदजनक है।