मोरे मन पिया बिनु कछु न सुहाए ..
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर : 'मोरे मन पिया बिनु कछु न सुहाए ..'। राग रागेश्वरी में जब उस्ताद कमा
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर :
'मोरे मन पिया बिनु कछु न सुहाए ..'। राग रागेश्वरी में जब उस्ताद कमाल अहमद खान ने विरह में डूबी इन पंक्तियों को भाव की गहराई तक उतार दिया, तो सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। अवसर था एहसास व मुजफ्फरपुर क्लब के तत्वावधान में आयोजित स्व. राम लाला प्रसाद सिंह को समर्पित तीन दिवसीय शास्त्रीय संगीत समारोह 'स्मृति' में पहले दिन शास्त्रीय गायन का। संगीत की यह महफिल डेढ़ घंटे विलंब से शुरू हुई, लेकिन अच्छी बात यह रही कि आयोजन में किसी प्रकार के उद्घाटन भाषण जैसी औपचारिकता नहीं रही। उस्ताद इकबाल अहमद खान के अलावा संयोजक मंडल के लोगों ने दीप प्रज्जवलित करने में सहयोग किया। तबले पर पटना से आए पं. राजशेखर, हारमोनियम पर मुजफ्फरपुर के पं. परमानंद और सितार पर जितेंद्र रहे। दिल्ली घराने के उस्ताद की गायकी की मिठास संगीत की सुहानी शाम में घुल गई। कहा जाता है कि संगीत आत्मा का राग है। तो सच में इसी आत्मा के राग ने पूरी महफिल को अध्यात्म के रंग में डुबो दिया। सूरदास जी की गोपियों के विरह भाव को जिस अंदाज से उन्होंने प्रदर्शित किया, वह उनके 'क्लास' को दर्शाता रहा। करीब पौन घंटे तक राग रागेश्वरी की बारीकियों पर अलाप लेते रहे। इसी क्रम में उन्होंने खयाल और फिर ठुमरी व सूफी भजनों की भी प्रस्तुति कर अपनी गायकी से श्रोताओं को सम्मोहित कर लिया।
शास्त्रीय संगीत में किए अनेक प्रयोग
टीवी में क्लासिकल सीरियल में संगीत निर्देशन देने वाले खान ने शास्त्रीय संगीत में अनेक प्रयोग किए। कौमी एकता को समर्पित राग 'मल्हार तिरंगा' की प्रस्तुति भी की। इसके अलावा चांद भैरव, चांद केदार और चांद कल्याण तीन नए प्रयोग राग में उन्होंने किए हैं।
गुणी जनों का शहर रहा है मुजफ्फरपुर
उस्ताद कमाल अहमद खान ने कहा कि मुजफ्फरपुर सांस्कृतिक और गुणी जनों का शहर रहा है। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि यहां अनेक बड़े कलाकार व संगीतज्ञ रहे हैं। कई बार यहां कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। आज भी गर्व महसूस कर रहा हूं।