ज्वालामुखी बना है मुंगेर में खास महाल की समस्या
मुंगेर । खास महाल की समस्या बिल्कुल जापान के सुसुप्त ज्वालामुखी पफ्यूजीगामा जैसी बनी है।
मुंगेर । खास महाल की समस्या बिल्कुल जापान के सुसुप्त ज्वालामुखी पफ्यूजीगामा जैसी बनी है। जो प्रत्येक बीस पच्चीस सालों की अवधि पर अचानक फट पड़ती है। और यही एक कारण है कि शहरी बाजार की 90 फीसदी आबादी पिछली सरकारों के साथ वर्तमान सरकारी अधिनियमों का खामियाजा उठा रही हैं। नतीजतन विकास की रीढ़ माने जाने वाले आर्थिक विकास की गति मुंगेर में ठप सा पड़ा है। खास महाल की जमीनों पर निवास व व्यवसाय के कारण भी व्यवसायी वर्ग पूंजी निवेश से कतराते हैं। मुंगेर का भू हदबंदी विभाग भी व्यवसायियों को अपने पुराने पर चुके पट्टे की जमीनों पर भवन निर्माण की अनुमति नही देता है।
खास महाल की जमीनों पर रह रहे लोगों के सामने आगे कुआं पीछे खाई वाली कहावत चरितार्थ होती है। स्थिति यह है कि पट्टाधारी न तो अपनी जमीनों का नवीनीकरण करा पा रहे हैं न हीं मकानों या दुकानों को कोई नया रूप दे पा रहे हैं। इसके पीछे इकलौता कारण खास महाल की जमीनों पर पट्टाधारियों का दो सौ वर्षों बाद भी मालिकाना हक नही होना है। देश की आजादी के बाद खास महाल पट्टाधारियों के बीच उम्मीद जगी थी कि देश की अपनी सरकार अब अंग्रेजी गुलामी वाली नीति में परिवर्तन कर खास महाल के लीज धारियों को जमीनों का मालिकाना हक देगी। लेकिन ऐसा हुआ नही। इसके उलट पांच दशक बाद राज्य सरकार ने वर्ष 11 में खास महाल अधिनियम को संशोधित करते हुए लीज नवीनीकरण की खातिर शुल्क में बेतहाशा वृद्धि कर दी। नतीजतन
2621 लीजधारियों में 2600 लीज का नवीनीकरण नही होने पाया। जिस कारण मुंगेर बाजार में व्यवसाय भी मंद पड़ता गया।