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सरकार की नजरे इनायत की है दरकार

मुंगेर। मुंगेर मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर खड़गपुर-जमुई मुख्यमार्ग पर स्थित भीमबांध सुरक्षित व

By Edited By: Published: Wed, 18 Jan 2017 03:05 AM (IST)Updated: Wed, 18 Jan 2017 03:05 AM (IST)
सरकार की नजरे इनायत की है दरकार
सरकार की नजरे इनायत की है दरकार

मुंगेर। मुंगेर मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर खड़गपुर-जमुई मुख्यमार्ग पर स्थित भीमबांध सुरक्षित वन क्षेत्र है। पहाड़ों की तलहटी में घने जंगल के बीच मौजूद भीमबांध वन्य जीव संरक्षित क्षेत्र भी है। साथ ही यहां गर्म एवं ठंडे जल के खूबसूरत झरने मौजूद हैं। भीमबांध की प्राकृतिक सुंदरता शुरू से लोगों को आकर्षित करती आई है। यही कारण है कि इसे एक पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित करने का प्रयास किया गया। पूर्व में यहां बड़े नामचीन नेता और अधिकारी मुंगेर आगमन पर प्रवास करते थे। सर्दी के मौसम में यहां लोगों की भीड़ जमा रहती थी। विगत कुछ वर्षों में नक्सली गतिविधियों के कारण पर्यटकों ने भीमबांध की ओर आना बंद कर दिया था। लेकिन, सीआरपीएफ कैंप की स्थापना के बाद फिर से पर्यटक भीमबांध पहुंचने लगे हैं। ऐसे में अगर, भीमबांध को पर्यटक स्थल के रूप में विकासित कर दिया जाए, तो स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

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खड़गपगुर झील को संवारने की जरूरत

फोटो : 17 एमयूएन 12

मुंगेर : खड़गपुर पहाड़ी श्रृंखला से उतर कर हजारों एकड़ में फैली खड़गपुर झील की विशाल जल राशि का अनुपम सौंदर्य देखते बनता है। तीन तरफ से पहाड़ व घने जंगलों की हरियाली के बीच स्थित खड़गपुर झील के नजारों का आनंद उठाने दूर-दराज से लोग यहां आते हैं। सर्दी के मौसम में खुले वातावरण में झील के किनारे पिकनिक मनाने लोगों का यहां जमावड़ा होता है। न सिर्फ सर्दी बल्कि गर्मी के मौसम में भी सैर-सपाटे के लिए यहां लोग आते रहते हैं। यहां की प्राकृतिक खूबसूरती और नजारे लोगों को खूब लुभाते हैं। हमेशा से स्थानीय लोग इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग करते रहे हैं। पूर्व में स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा इसके सौंदर्यीकरण को लेकर शिलान्यास भी किया गया और इसे विकसित करने का आश्वासन दिया गया, लेकिन इसका परिणाम सिफर रहा। खड़गपुर झील न सिर्फ अपनी खूबसूरती बल्कि इस क्षेत्र के हजारों एकड़ भूमि में ¨सचाई व पेयजल के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। मुंगेर के इस महत्पूर्ण हस्ताक्षर को आज संवारने की जरूरत है।

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ऋषि-मुनियों की तपोभूमि ऋषिकुंड का हो विकास

फोटो : 17 एमयूएन 11

मुंगेर : खड़गपुर पहाड़ी श्रृंखला की तलहटी में जंगलों के बीच स्थित गर्म जल का झरना ऋषिकुंड कई मायनों में अनोखा है। पहला यहां की प्रकृतिक सुंदरता लोगों को आकर्षित करती है। दूसरा यहां के गर्म पानी में सल्फर के कारण ऐसे औषधीय गुण हैं जो चर्म रोग व पेट के रोग को खत्म करता है। तीसरा यह एक धार्मिक व पौराणिक स्थल के रूप में भी विख्यात है। इसे ऋषि-मुनियों की तपोभूमि कहा जाता है। यहां कई सारे मंदिर हैं। यहां से कई किवदंतियां भी जुड़ी हुई है। ऋषिकुंड की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां राजगीर और पुष्कर की तर्ज पर हर तीन साल में एक बार मलेमास का मेला लगता है। एक महीने तक चलने वाले इस मेले में देश के दूसरे हिस्सों से साधु संन्यासी यहां स्नान के लिए पहुंचते है।

इन सबसे हटकर यहां की खूबसूरत वादी और गर्म पानी पूरी सर्दी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

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मुंगेर के इतिहास का महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है मीर कासिम सुरंग

फोटो : 17 एमयूएन 2 व 9

मुंगेर : मुंगेर के किला परिसर में बने श्रीकृष्ण वाटिका में 18वीं शताब्दी में मीर कासिम द्वारा बनाया गया गुप्त सुरंग मौजूद है। इस सुरंग के बारे में कहानी प्रचलित है कि, जब अंग्रेजों ने मीर कासिम पर आक्रमण किया तो इसी सुरंग की सहायता से मीर कासिम मुंगेर से बाहर निकला था। यह सुरंग मुंगेर की एक महत्वपूर्ण घटना का गवाह है। इस सुरंग की बनावट उस समय के स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना भी है। यहीं पर मीर कासिम के पुत्री और पुत्र क्रमश: गुल और बहार का मकबरा भी है।आज यह स्थल मुंगेर में ही अपनी पहचान के लिए जद्दोजहद कर रहा है।

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महत्वपूर्ण धरोहर है सूफी संत की निशानी पीर नफा शाह की मजार

फोटो : 17 एमयूएन 1

मुंगेर : पीर नफा शाह मुंगेर का सबसे पौराणिक स्थल है। किला परिसर के दक्षिणी द्वार के समीप 1177 के करीब यहां एक पीर का मकबरा बनाया गया था। इसके बाद 1497 में यहां के तत्कालीन गवर्नर के द्वारा इस मकबरे के पास एक मस्जिद बनवाई गई। इसे पीर नफा शाह नाम दिया गया। यह मजार भी मुंगेर के पौराणिक व महत्वपूर्ण धरोहरों में एक है। यह मुंगेर के प्राचीनतम इतिहास की महत्वपूर्ण निशानी है। इसे संरक्षित रखना मुंगेर सहित राज्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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पीर पहाड़ पर ढह रहा मुंगेर का इतिहास

फोटो : 17 एमयूएन 4

मुंगेर : पीर पहाड़ मुंगेर का एक महत्वपूर्ण स्थल है। इस पहाड़ की चोटी पर नवाब मीर कासिम के सेनापति गुर्गिन खान के द्वारा भव्य भवन का निर्माण किया गया था। यहीं गुर्गिन खान का डेरा था और पूरी सेना यहीं रहती थी। यहां से मुंगेर शहर सहित आस-पास के पूरे क्षेत्र का विहंगम ²श्य नजर आता है। आज ये पौराणिक भवन खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। मुंगेर के बुलंद इतिहास का यह खंडहर आज ढह रहा है। इस ऐतिहासिक निशानी को संरक्षित करने के प्रयास धरातल पर नजर नहीं आ रहे हैं। इस पीर पहाड़ का रिश्ता रवींद्रनाथ टैगोर से भी जुड़ा है। क्योंकि इस पहाड़ पर उन्होंने गीतांजलि के कई छंद का सृजन किया था। इस लिहाज से भी इसकी महत्ता एकबारगी बढ़ जाती है।

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शक्तिस्थल को शक्ति की जरूरत

फोटो - 17 एमयूएन 5

देश प्रसिद्ध शक्तिपीठ में से एक चंडिका स्थान मुंगेर की पहचान से जुड़ा है। दूर दूर से श्रद्धालु चंडिका स्थान में पूजा अर्चना करने आते हैं। लेकिन, चंडिका स्थान को विकसित करने की दिशा में सम्मयक प्रयास नहीं किया जा सका। यहां मां के नेत्र रूप की पूजा होती है। अब मुंगेर के लोगों की आंखें सरकार पर टिकी है कि शायद चंडिका स्थान के विकास को लेकर कोई ठोस योजना बनाई जाए।


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