चुनाव में देखने को मिल रहे कई रंग
मुंगेर। चुनाव में लोगों को कई रंग देखने को मिल रहे हैं। चुनाव प्रचार के तरीके से लोगों का दिल भरने क
मुंगेर। चुनाव में लोगों को कई रंग देखने को मिल रहे हैं। चुनाव प्रचार के तरीके से लोगों का दिल भरने के बाद अब लोग विकास और जाति के बीच संतुलन स्थापित करते नजर आ रहे हैं। पहले तो राज्य या राष्ट्र स्तरीय नेता ही चुनावी मंच एवं बयानों से अपने जाति के वोट को संजोने का काम कर रहे थे। लेकिन अब मतदाता भी जाति की तराजू पर बांटने लगे हैं। अपनी जाति की गणना कर चुनाव में जीत हार का आकलन करते नजर आ रहे हैं। चौक चौराहों पर अब विकास की बातें गौण होने लगी है। लोग किस गांव में किसका कितना वोट है, उसका आकलन कर चुनाव में किस उम्मीदवार को वोट मिलेगा तथा किस जाति का कितना वोट कौन काटेगा पर चर्चा करते देखे जा रहे हैं। विकास के मुद्दे गौण होने पर बुद्धिजीवियों में बहस छिड़ गई है कि आखिर कौन विकास करने की बात सोचेगा। जब अंत-अंत में जनता जाति पर बंट कर वोट करेगी। इससे बिहार का विकास होने से तो रहा बल्कि नेता बिना किसी काम के ही चुनाव जीतने का प्रयास जात-पात का कार्ड खोलकर करते रहेगें। इधर आमलोगों का कहना है कि जनता प्रचार में आने वाले नेताओं से सवाल तो पूछती है। आपने मेरे लिए पांच साल तक क्या काम किया। नेताओं को खरी खोटी भी सुनाते हैं। लेकिन जब वोट देने की बारी आती है तो हार कर अपनी जाति बिरादरी पर उतर आते हैं।