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कभी मुंगेर में कांग्रेस का था एक छत्र राज

मुंगेर [प्रशांत]। मुंगेर कभी कांग्रेसियों का गढ़ हुआ करता था। लोग कहते थे कि मुंगेर की हवाओं में क

By Edited By: Published: Sun, 30 Aug 2015 01:07 AM (IST)Updated: Sun, 30 Aug 2015 01:07 AM (IST)
कभी मुंगेर में कांग्रेस का था एक छत्र राज

मुंगेर [प्रशांत]।

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मुंगेर कभी कांग्रेसियों का गढ़ हुआ करता था। लोग कहते थे कि मुंगेर की हवाओं में कांग्रेस की नशा घुली हुई है। 1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार वनारसी प्रसाद कांग्रेस के सांसद बने। वहीं, मुंगेर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के निरपद मुखर्जी, जमालपुर से जोगेंद्र महतो और तारापुर से राय वासुकीनाथ कांग्रेस के विधायक बने। 1962 के चुनाव में पूरे क्षेत्र में कांग्रेस की हवा बह रही थी। लिहाजा वनारसी प्रसाद फिर से सांसद बने और मुंगेर, जमालपुर और तारापुर के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेसी उम्मीदवारों की जीत हुई। जिसमें मुंगेर से राम गो¨वद ¨सह वर्मा, जमालपुर से योगेंद्र महतो और तारापुर से जयमंगल ¨सह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे। 1964 में मुंगेर लोकसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव में मधु लिमिये मुंगेर के सांसद बने। इसके बाद 1967 में मुंगेर में समाजवादियों के पक्ष में बदलाव की बयार बही और देखते ही देखते कांग्रेस पक्ष की हवा विपरीत दिशा में बहने लगी। समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर मधुलिमिये चुनाव जीत कर दूसरी बार सांसद बने। तो वहीं विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का सफाया हो गया। मुंगेर विधानसभा से हासिम, जमालपुर से बीपी यादव और तारापुर से बीएन प्रशांत समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे। 1967 में लगे चुनावी झटके के बाद कांग्रेस पार्टी जिला में मजबूती से खड़ी नहीं हो सकी। हालांकि 1971 में डीपी यादव ने संसदीय चुनाव में कांग्रेस को फिर से जीत दिला दी। इससे कांग्रेस को एक तरह से नई संजीवनी मिली। इसके बाद 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में मुंगेर और तारापुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेसी उम्मीदवारों को जीत मिली। मुंगेर विधानसभा से कांग्रेसी उम्मीदवार प्रफुल्ल कुमार मिश्रा और तारापुर में तारणी प्रसाद ने जीत दर्ज की। लेकिन, जमालपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का भाग्य का उदय नहीं हो सका। 1972 के बाद मुंगेर विधानसभा क्षेत्र से भी कांग्रेस का कोई उम्मीदवार चुनाव जीत दर्ज नहीं कर सके। हालांकि, डीपी यादव ने 1980 और 1984 में जीत दर्ज की। लेकिन, यह जीत डीपी यादव के व्यक्तित्व की जीत बन कर रह गई। कांग्रेस को अपनी जड़ जमाने का मौका नहीं मिल सका। 1989 में हुए संसदीय चुनाव में धनराज ¨सह ने जनता दल के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की। इसके बाद कोई भी कांग्रेस के टिकट पर संसद भवन तक नहीं पहुंच पाया। 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में शकुनी चौधरी तारापुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और जीत भी दर्ज की। इसके बाद शकुनी समाजवादियों के खेमे में चल गए। 1990 के बाद तारापुर विधानसभा क्षेत्र से भी कांग्रेस का कोई उम्मीदवार चुनाव में जीत दर्ज नहीं कर सका है। मंडल कमीशन की लहर के बाद से मुंगेर में समाजवादियों का एक तरह से वर्चस्व कायम हो गया।

क्या कहते हैं नेताजी

मुंगेर से कांग्रेस ने बिहार को पहला मुख्यमंत्री श्री बाबू के रूप में दिया। वहीं, चंद्रशेखर ¨सह भी बिहार के मुख्यमंत्री बने। मुंगेर ने बड़े-बड़े नेता दिए। लेकिन, यहां पार्टी का सकेंड लाइनर नेतृत्व तैयार नहीं हो सका। इसी कारण जिला में कांग्रेस बुरा हाल रहा। अब फिर से नए सिरे से कांग्रेस पार्टी संगठन को मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी गई है।

सौरव निधि, जिलाध्यक्ष कांग्रेस

------------------------ विकास से कांग्रेस की दूरी और बिहार में लालू प्रसाद से गठबंधन के कारण मुंगेर की जनता ने कांग्रेस को हशिये पर डाल दिया।

कुमार प्रणय, जिलाध्यक्ष भाजपा


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