परवरिश योजना को खुद परवरिश की है जरूरत
इस योजना के तहत लाभुक लक्ष्य समूह को चिन्हित करने का काम आंगनबाड़ी सेविकाओं का है। इस काम को लेकर सीड
इस योजना के तहत लाभुक लक्ष्य समूह को चिन्हित करने का काम आंगनबाड़ी सेविकाओं का है। इस काम को लेकर सीडीपीओ और सेविकाएं रुचि नहीं ले रही है। इसलिए परवरिश योजना प्रभावी तरीके से कार्यान्वित नहीं हो पा रहा है।
विजय कुमार, जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी, मुंगेर
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इस योजना के तहत जो लक्ष्य समूह है। उससे जुड़े एक भी बच्चे हमें नहीं मिले। सीडीपीओ को आंगनबाड़ी सेविकाओं द्वारा लाभुकों का सर्वे कर सूची देने की जिम्मेवारी है। उसके बाद ही मैं स्वीकृति प्रदान करुंगा। सीडीपीओ द्वारा ऐसी सूची प्राप्त नहीं हुई है।
कुंदन कुमार, एसडीओ, सदर मुंगेर
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सिद्धार्थ भदौरिया, मुंगेर :
बच्चों के संरक्षण एवं विकास को लेकर देशभर में अनेकों कार्यक्रम चल रहे हैं। इसी के तहत गत वर्ष परवरिश योजना की शुरुआत की गई। इस योजना द्वारा अनाथ, बेसहारा, एचआइवी या एड्स पीड़ित बच्चे या ऐसे अभिभावकों के बच्चे, कुष्ठ रोग से पीड़ित 40 प्रतिशत विकलांग हो चुके माता-पिता के बच्चों को इस योजना के तहत अनुदान भत्ता प्रदान करना है।
मुंगेर जिला में शुरुआत में ही इस योजना की रफ्तार धीमी पड़ गई। पूरे मुंगेर जिला में वर्ष भर में सिर्फ दो बच्चों को इस योजना का लाभ मिल पाया है। जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी बताते हैं कि इस योजना के लिए इस साल 5 लाख रुपये आए हैं। इसमें से सिर्फ दो बच्चों को एक-एक हजार रुपये मिल रहे हैं।
किसे मिलेगा लाभ :
परवरिश योजना के तहत लक्ष्य समूह के वैसे परिवार को यह लाभ मिलेगा जिनका नाम बीपीएल सूची में हो। साथ ही उनकी वार्षिक आय 60 हजार से कम हो। बच्चे की उम्र 18 वर्ष से कम होनी चाहिए। 0 से 6 वर्ष की उम्र समूह के बच्चों को 900 रुपये और 6 से 18 वर्ष उम्र समूह के बच्चों के लिए 1000 रुपये प्रति माह दिए जाएंगे।
प्रक्रिया :
परवरिश योजना के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों से निश्शुल्क आवेदन दिए जाते हैं। आवेदन को भरकर सीडीपीओ के कार्यालय में जमा किया जाएगा। सीडीपीओ द्वारा आवेदनों को सूचीबद्ध कर आंगनबाड़ी सेविकाओं को जांच के लिए दे दिया जाता है। सेविकाओं को 15 दिनों के अंदर आवेदनों को सत्यापित कर वापस सीडीपीओ को आवेदन देना होता है। इस काम के लिए सेविकाओं को प्रति लाभुक 50 रुपये दिया जाता है। सीडीपीओ आवेदन को लाभ प्रदान करने की अनुशंसा के लिए एसडीओ के पास दे दिया जाता है। वहां से स्वीकृत्यादेश सहायक निदेशक जिला बाल संरक्षण इकाई को भेज दिया जाता है। यहां से राशि लाभार्थियों के खाते में डाल दी जाती है।