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जलस्रोतों के जीवित रहने पर ही जल संचय संभव

जल संकट से निपटने के लिए हमें न सिर्फ पानी बचाने की जरूरत है बल्कि जल संचय के परंपरागत स्त्रोतों को भी सहेजने की जरूरत है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 04:17 PM (IST)Updated: Tue, 21 Mar 2017 06:37 PM (IST)
जलस्रोतों के जीवित रहने पर ही जल संचय संभव
जलस्रोतों के जीवित रहने पर ही जल संचय संभव

मधुबनी [जेएनएन]। गर्मी का मौसम में जल समस्या अब आम बात होती जा रही है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही चापाकल सूखने लगते हैं। पानी का स्तर काफी नीचे चला जाता है। नदी, तालाब, कुंए सब सूखने लगते हैं। पीने के पानी के लिए हाहाकर मच जाता है। देश के अन्य हिस्‍सों की बात छोड़ दें बिहार के कई जिले में अभी से ही पानी की किल्‍लत शुरू हो चुकी है। ऐसे में जरूरत है जल संरक्षण की।

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जल संरक्षण के लिए प्राचीन जल स्त्रोतों का जीर्णोद्धार के साथ उसकी नियमित रूप से देखभाल पर अमल किया जाए तो निश्चित रूप से गर्मी के दिनों में जल संकट की समस्या पर हद तक काबू पाया जा सकता है। वही जल की बर्बादी भी रुकेगी।

जल संरक्षण के लिए वर्षा जल संचय हेतु बड़ी संख्या में पारंपरिक जल स्त्रोत कुआं को बचाकर जीवित करना होगा। प्राचीन काल में पेयजल सहित अन्य कार्यों हेतु जल के लिए कुआं ही मुख्य साधन माना जाता रहा है। जबकि सिंचाई, स्नान और पशुओं के पीने के पेयजल हेतु तालाब उपयुक्त साबित माना जाता रहा है।

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कुआं व तालाबों के अतिक्रमण के साथ इसका अस्तित्व खतरे में होने से जल संकट की समस्या बढ़ती चली गई। नप क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक कुआं का लोगों द्वारा पूरी तरह अतिक्रमण कर लिया गया। कई कुएं कूड़ा-कर्कट से भरे पड़े नजर आते हैं। बेशकीमती भूखंडों पर अतिक्रमित कुओं को मुक्त कराकर फिर से इसे जीवित करने में अक्षम साबित हो रहा है।

वर्षाजल संचय का उपयुक्त साधन कुआं
जेएमडीपीएल महिला कालेज के भूगोल विभागाध्यक्ष डा. शुभ कुमार साह का कहना है कि जल संकट पर काबू पाने में जिले में जिले भर में बड़ी संख्या में कुआं कारगर साबित हो सकता है। वर्तमान समय में एक कुआं के इस दिशा में प्रथम चरण में शहरी क्षेत्र के सभी कुआं को जीवित कर शहरी क्षेत्र में पेयजल की समस्या पर काबू पाया जा सकता है।

एक कुआं को फिर से जीवित करने पर 50 से अधिक परिवारों के 250 से अधिक लोगों को नियमित रूप से पेयजल मुहैया कराया जा सकता है। कुआं वर्षाजल के दुरुपयोग को रोकने में उपयुक्त तो साबित होता है। श्री साह कहते हैं कि वर्तमान समय में एक नए कुआं निर्माण में करीब तीन से चार लाख की राशि का व्यय आ सकता है। ऐसी स्थिति में पुराने कुआं का जीर्णोद्धार काफी लाभदायक साबित होगा।

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दूषित जल से बीमारियों का खतरा
पेयजल की अहमियत इस तरह लगाया जा सकता है कि जिले भर में बोतल बंद पानी की मांग तेजी से बढ़ने लगती है। खासकर गर्मी के दिनों में इसकी मांग कई गुणा अधिक बढ़ जाती है। स्वच्छ पेयजल की चाहत में लोग बोतल बंद पानी पर राशि खर्च करने से नही हिचकते। हालांकि शहरी क्षेत्रों में चापाकल से निकलने वाले पानी की स्वच्छता बहाल रखने के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरणों के प्रयोग होने लगा है।

इससे अलग शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कम लेयर पर गाड़े गए चापाकल से दूषित जल निकलने की शिकायत रहती है। ऐसे जल के सेबन से पेट सहित विभिन्न प्रकार की बीमारियों का खतरा बना रहता है। जानकारों का मानें तो दूषित जल के सेवन से बचना चाहिए।

नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी जटाशंकर झा का कहना है कि नगर परिषद क्षेत्र के वर्षों पूर्व पेयजल के मुख्य श्रोत के रूप में कुओं को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराकर फिर से जीवित किया जाएगा। इसके लिए विशेष योजना बनाई जाएगी। कुओं को जीवित होने से वर्षाजल संचय का लाभ मिलेगा। 

पानी कैसे बचाएं
क्या आपने कभी सोचा है कि अगर दुनिया मे पानी खत्म हो गया तो क्या होगा? तब कैसा होगा हमारा जीवन। नदियां सूख रही हैं। झीलें और तालाब लुप्त हो चुके हैं। भू-गर्भीय जल का स्तर तेजी से कम हो रहा है। पानी के स्त्रोत बढ़े नही लेकिन जनसंख्या कई गुणा बढ़ गई।

जल संकट से निपटने के लिए हमें पानी को बचाना होगा। इसके सामूहिक प्रयास करना होगा। जल की महत्ताको समझना होगा। 

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