उठी डोली, सियाराममय हुआ मिथिलांचल
मधुबनी। जिले के हरलाखी प्रखंड के कलना गांव स्थित मणिपर्वत गढ़ (कल्याणेश्वर) में नेपाल के कचूरी स्थान
मधुबनी। जिले के हरलाखी प्रखंड के कलना गांव स्थित मणिपर्वत गढ़ (कल्याणेश्वर) में नेपाल के कचूरी स्थान से चली चार डोलियों क्रमश: रामजानकी, विश्व बिहारी, मिथिला बिहारी व हनुमान डोली रविवार शाम पहुंच रात्रि विश्राम करते हुए फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा सोमवार सुबह डोली परिक्रमा पथ पर बढ़ चली। कल्याणेश्वर पहुंचने के साथ पूरा वातावरण सियाराममय हो गया है। डोली के साथ हजारों की संख्या में रामभक्त चल रहे हैं। चारों डोली भारत व नेपाल क्षेत्र के रामजानकी से जुड़े प्राचीन स्थलों की परिक्रमा करते हुए पूर्णिमा के दिन जनकपुर पहुंचेगी। जहां होली के दिन विशेष पूजन के साथ परिक्रमा का समापन होगा। डोली के पीछे पैदल बच्चों के पीठ पर लादे, सिर पर गठरी लिए, मूंह से सियाराम-सियाराम का वाचन करते भक्त प्रथम पड़ाव गिरजास्थान की ओर चल पड़े हैं। डोली जहां भी पहुंचती है एक झलक पाने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। सड़क के दोनों ओर खड़े होकर सियाराम भक्त डोली सहित परिक्रमा में भाग ले रहे लोगों पर फूलों की वर्षा व डोली में विराज रहे देवों की फूल व प्रसाद चढ़ा कर पूजा करते हैं।
कहां-कहां होता पड़ाव
कल्याणेश्वर से चलकर प्रसिद्ध गिरिजास्थान फुलहर में डोलियों की टोली रात्रि विश्राम करती है। वहां से दूसरे दिन मटिहानी स्थल (नेपाल) में प्रवेश करती है। यहां भी रात्रि पड़ाव होता है। वहां से चलकर ध्रूव कुंड फिर वहां से कंचन न में रात्रि पड़ाव करती है। वहां से अगले दिन चलकर परवत्ता,सतोखर, धनुषा, पिरोखर इन सभी जगहों पर रात्रि पड़ाव करते हुए चतुर्दशी को करुणा (भारत) पहुंचती है। प र्णिमा के दिन विसौल से परिक्रमा में भाग ले रहे भक्त अपने-अपने घर लौट जाते हैं। जबकि वहां से डोली जनकपुर रामजानकी मंदिर के मैदान में पहुंचती है।
स्वत: स्फूर्त स्वचालित होती है परिक्रमा
मिथिला परिक्रमा प्राचीनकाल से चली आ रही है। जो न केवल जनकनंदनी से जुड़ाव को प्रति वर्ष अलग आयाम देता है। बल्कि भारत-नेपाल के सांस्कृतिक संबंधों को भी मजबूर करने का काम करता है। परिक्रमा में भाग लेने के लिए जिले के प्रसिद्ध कल्याणेश्वर स्थान में शिवरात्रि से ही भक्तों की भीड़ जुटने लगती है। जिसमें आधी से अधिक नेपाल के महिला-पुरुष रहते हैं। वे अपने साथ लाए पोलीथिन सीट से टेंटनुमा बसेरा बनाकर डोली की प्रतिक्षा करती है। परिक्रमा की खूबी यह है कि यह स्वत: स्फूर्त संचालित होता है। परिक्रमा में भाग लेने वाले भक्त अपने साथ भोजन, आवास, जलावन, बर्तन आदि साथ लेकर चलते हैं। यही नहीं डोली में कल्याणेश्वर पड़ाव पर ट्रैक्टरों, टैर गाड़ियों पर लादकर स्थानीय व आसपास के लोग भारी मात्रा में चूड़ा-गुड़, चावल-चीनी आदि का वितरण साथ चल रहे साधू-संतों के बीच करते हैं। यही नहीं विभिन्न पड़ाव स्थलों पर भी खानपान की व्यवस्था स्थानीय लोग करते हैं। सुरक्षा में वैसे जगह-जगह पुलिस बल भी रहते हैं। परन्तु विश्रम स्थलों पर स्थानीय लोग सुरक्षा व्यवस्था में रहते हैं। जगह-जगह रात्रि विश्रम स्थल पर ग्रामीण चिकित्सकों की टीम की ओर से नि:शुल्क चिकित्सा व दवा की व्यवस्था रहती है।