हर ओर सामा चकेवा की धूम
मधवापुर (मधुबनी), संस : लोक आस्था से लबालब भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक पर्व सामा चकेवा धूमधाम के साथ
मधवापुर (मधुबनी), संस : लोक आस्था से लबालब भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक पर्व सामा चकेवा धूमधाम के साथ दस्तक दे चुका है।
कार्तिक शुक्ल पंचमी से प्रारंभ होने वाला यह विशेष पर्व कार्तिक पूर्णिमा को समाप्त होता है। दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व के दौरान पूरे मिथिला प्रक्षेत्र में लोक गीतों की बयार बहती है। इस दस दिनों के समय अवधि में बहने गीत के माध्यम से अपने भाई की लंबी आयु एवं सुख स्मृद्धि के लिए आशीष मागती हैं।
विदित हो कि कार्तिक शुक्ल पंचमी को मिथिला क्षेत्र में बहनें भाई द्वारा लाई गई मिट्टी से पक्षी स्वरूप सामा चकेवा की मूर्ति बनाती हैं। साथ में वृंदावन, सतभईया, बटतकनी, झाझी, कुता, भंवरा, बजनिया, चुगला आदि विभिन्न तरह के आकर्षक मूर्तिया बनाती हैं तथा पंचमी से पूर्णिमा तक रोज रात बहनें कई तरह के भाई बहन के प्रेम आधारित गीत गाती है और बहनों का समूह एकत्रित हो सामा खेलती हैं। अंत में चुगला की दाढ़ी में आग लगाकर हंसी-ठिठोली करती हैं। कार्तिक पूर्णिमा की रात सामा चकेवा के साथ अन्य मूर्तियों को भाई अपने घुटने के भार पर तोड़ कर विदा देते हैं। विदाई के समय मैथिलानी करुण स्वर में समदाउन गाते हुए जोते हुए खेतों में पुन: अगले वर्ष आने की न्योता देते हुए सभी अपने-अपने घर लौट जाती हैं।
सामा चकेवा पर्व मिथिला की संस्कार एवं संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसमें हमारी संस्कृति की झलक मिलती है।
इसकी कथा का सूत्र भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। इन दिनों रात के समय साम चक, साम चक, अईह हे, जोतला खेत में बैसिहअ हे.. जैसे गीतों से गुंजायमान हो रहा है।