एक राह बंद तो तलाश ली नई डगर
कपिलेश्वर साह, मधुबनी, संस : ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योग के माध्यम से कामयाबी की राह तय करना तो कोई इनसे सीखे। जो गुड़ उद्योग के सहारे अपनी किस्मत संवारने में सफलता कायम कर रहे हैं। गन्ना आधारित गुड़ उद्योग रोजगार के बेहतर साधन साबित हो रहा है। गुड़ उद्योग के क्षेत्र में अपार संभावनाएं को नकारा नहीं जा सकता। क्षेत्रीय चीनी मिल को बंद होने के बाद यहां के गन्ना उत्पादकों ने हार नहीं मानी और वे गुड़ उद्योग की राह पर आगे बढ़ने लगे। गुड़ उद्योग को बढ़ावा देने में जिले के मालवर यादव, राधेश्याम तिवारी, रामावतार यादव, सकलदेव यादव, दिनेश नारायण शुक्ला, संजय पासवान, राजेश तिवारी, जामुन यादव, रासो यादव सहित तीन दर्जन से अधिक प्रयास अन्य किसानों के लिए मिशाल बन रहा है।
पांच करोड़ से अधिक का कारोबार
गन्ना के रस से तैयार होने वाले गुड़ उद्योग रोजगार मुहैया के साथ ही गन्ना खेती की वजूद बचाने का प्रयास जिले के खजुरी, खर्रा, बलहा, देवढ़, मोहनपुर, भच्छी, सहुआ, कैटोला, शंभुआर सहित अन्य गांवों में जारी है। इन गांवों में गुड़ उद्योग से प्रति वर्ष करीब पांच करोड़ से अधिक रुपये कारोबार होता है। करीब एक लाख की लागत से पांच श्रमिकों के सहारे प्रति वर्ष सात माह तक चलने वाले इस उद्योग से प्रति यूनिट 250 से 300 क्विंटल गुड़ का उत्पादन होता है जिससे 45 से 55 हजार रुपये की आमदनी होती है। सितंबर से मई माह तक निरंतर चलने वाला यह उद्योग विद्युत अनापूर्ति के कारण जेनरेटर के सहारे संचालित किया जा रहा है।
दूर-दूर से आते कारोबारी
छठ, मकर संक्रांति सहित अन्य त्योहारों के अलावा मवेशियों का चारा व आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयोग होने वाले गुड़ की खरीदारी के लिए जिले के अन्य हिस्सों के अलावा दरभंगा, समस्तीपुर के कारोबारी यहां आते हैं। इस उद्योग से जुड़े किसानों को गन्ना की खेती पर बोरिंग व डीजल अनुदान का लाभ के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। जिससे कम मुनाफा पर यह उद्योग के संचालन को विवश हैं। उचित बाजार के अभाव में कारोबारियों के हाथों काफी कम मुनाफा पर गुड़ की बिक्री करना पड़ रहा है।
'गुड़ उद्योग के लिए क्रशर, कराह सहित अन्य उपकरण पर सब्सिडी की जरूरत है। सरकारी स्तर पर गुड़ उद्योग को प्रोत्साहन मिलना चाहिए।'
-रामराजी सिंह
किसान भूषण से सम्मानित प्रगतिशील किसान