डॉ. शरदचंद हत्याकांड की नहीं सुलझी गुत्थी
लखीसराय। ऐ हवा मजारों पर उनके रूक जाना, झुक कर जाना, लूटकर-मिटकर भी मस्ती में सोया है, कोई दिवाना, व
लखीसराय। ऐ हवा मजारों पर उनके रूक जाना, झुक कर जाना, लूटकर-मिटकर भी मस्ती में सोया है, कोई दिवाना, वो वतन जहां की गलियों में चुपचाप उमर अपनी दे दी, वो वतन जहां की कलियों ने जिंदगी अपनी दे दी, मेरी अर्पित उन गौरव को श्रद्धा के सुमन चढ़ा देना..। बालिका विद्यापीठ लखीसराय के संस्थापक स्व. ब्रजनंदन शर्मा उर्फ बाबू जी की यह स्मृति गीत संस्था के सचिव स्व. डा. कुमार शरदचंद की याद को ताजा कर दिया है। 2 अगस्त 2014 की सुबह बाइक सवार अपराधियों ने बालिका विद्यापीठ स्थित आवास में घुसकर डा. कुमार शरदचंद की गोली मारकर हत्या कर दी थी। हाई प्रोफाइल इस हत्याकांड के एक वर्ष पूरे हो गए। लेकिन अब भी शरदचंद की हत्या का राज बरकरार है। सड़क से सदन तक इस हत्याकांड की आवाज उठी। इसके बाद सरकार के आदेश पर पुलिस महानिदेशक बिहार पटना ने 20 अक्टूबर 2014 को शरदचंद हत्याकांड लखीसराय थाना कांड संख्या 443/14 की जांच सीआईडी को सौंप दी। 23 अक्टूबर 2014 को सीआईडी ने हत्याकांड से संबंधित सभी सूचना लखीसराय पुलिस से प्राप्त कर जांच शुरू कर दी। इस मामले में शरदचंद की पत्नी उषा शर्मा के बयान पर सात नामजद प्राथमिकी अभियुक्त बनाया गया। दर्ज प्राथमिकी में हत्या का कारण संस्थान की जमीन एवं संपत्ति पर कब्जा करना बताया गया। पुलिस के लिए सिरदर्द बनी इस हत्याकांड में पुलिस ने जूनियर रौशन सिंह एवं सीनियर रौशन सिंह, नीरज कुमार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस हत्या की उच्च स्तरीय जांच भी शुरू की गई। घटना के एक सप्ताह बाद ही साइवर क्राइम के एएसपी निलेश कुमार ने बालिका विद्यापीठ पहुंचकर वैज्ञानिक तरीके से घटना की जांच शुरू कर दी। सीआईडी के पास मामला चले जाने के बाद जिला पुलिस ने राहत की सांस ली। लेकिन हत्या के एक वर्ष बाद भी सीआईडी की जांच एवं हत्या के पीछे छिपा राज जानने को लेकर रहस्य बरकरार है। विदित हो कि विद्यापीठ पर कब्जा को लेकर जो सत्ता संग्राम चल रहा था। उसका तत्काल अंत डा. शरदचंद के परिजनों द्वारा पूरे परिसर पर कब्जा कर लेने से हो गया। जो काम डा. शरदचंद अपने समय में नहीं कर पाए वह काम उनकी शहादत के बाद उनके परिजनों ने किया। चाहे मकसद जो हो बालिका विद्यापीठ के पूरे परिसर की घेराबंदी हो गई और बड़े-बड़े गेट लग गए। संस्थान ट्रस्ट के पूर्व पदाधिकारियों को हत्याकांड में नामजद किए जाने से एक बड़ा अवरोधक भी दूर हो गया।