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अनोखा रिवाज : लाश को दफन कर बोल्डर से दबा देते आदिवासी

संसू., चानन (लखीसराय) : आदिवासी समुदाय में एक ऐसी परंपरा है जिसे सुनने व देखने के बाद अटपटा लगता है।

By Edited By: Published: Sun, 19 Apr 2015 02:06 AM (IST)Updated: Sun, 19 Apr 2015 04:41 AM (IST)
अनोखा रिवाज : लाश को दफन कर बोल्डर से दबा देते आदिवासी

संसू., चानन (लखीसराय) : आदिवासी समुदाय में एक ऐसी परंपरा है जिसे सुनने व देखने के बाद अटपटा लगता है। लेकिन सच यह है कि संथाल आदिवासी समाज में यह परंपरागत रिवाज है कि गाव में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसका अंतिम संस्कार गाव के बगल स्थित जंगली क्षेत्र में दफन कर उपर से पत्थर व बोल्डर से दबा दिया जाता है। आदिवासी समुदाय के लोगों के अनुसार किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होने पर गाव से लेकर जंगल तक शव को खाट पर ले जाते हैं। मृतक के परिजन एवं सगे-संबंधियों द्वारा मृतक के नाम पर दान देते हैं। बर्तन, रुपये, सोना-चादी, कपड़ा आदि परंपरागत सामान को दान करते हैं और उसे जंगल स्थित श्मशान तक ले जाते हैं। जंगली घुट्टी के पौधे के काटा की पाच टहनी में दो टहनी पैर की तरफ एवं तीन टहनी सिर की तरफ देकर उसे दफन कर पत्थर व बोल्डर से दबा दिया जाता है। दान दिए गए सामान को बेचकर व रुपये-पैसे से खरीदे गए सामानों को उसी दिन मृतक के परिजन एवं गोतिया को छोड़कर गाव के सभी लोग उसे भोज के रूप में ग्रहण करते हैं। आदिवासी समाज में भी श्राद्ध कार्यक्रम 13 दिनों में पूरा होता है और चौदहवें दिन मृतक के श्रेष्ठ परिजनों को पगड़ी देकर सम्मानित कर श्राद्ध कार्यक्रम संपन्न कराया जाता है। संथाली आदिवासी समुदाय के लोगों का मानना है कि पत्थर से इसलिए दवा दिया जाता है कि कोई जंगली जानवर उसे नोच कर नहीं खा सके। ऐसी प्रथा चानन प्रखंड क्षेत्र के कुंदर पंचायत अंतर्गत आदिवासी बाहुल्य गाव जगुआजोर के अलावा गोरधोवा, गोबरदाहा आदि गावों के आदिवासियों का है।

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