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प्रोत्साहन के अभाव में फीकी पड़ रही नीली क्रांति

किशनगंज। यहां मछली पालन की अपार संभावना के बावजूद जानकारी व प्रोत्साहन के अभाव में मछुआरे इस व्यवसाय

By Edited By: Published: Mon, 20 Feb 2017 06:41 PM (IST)Updated: Mon, 20 Feb 2017 06:41 PM (IST)
प्रोत्साहन के अभाव में फीकी पड़ रही नीली क्रांति
प्रोत्साहन के अभाव में फीकी पड़ रही नीली क्रांति

किशनगंज। यहां मछली पालन की अपार संभावना के बावजूद जानकारी व प्रोत्साहन के अभाव में मछुआरे इस व्यवसाय से विमुख होते जा रहे हैं। जिस कारण यहां के लोग आंध्र प्रदेश, बंगाल सहित बाहर से आयातित मछली पर निर्भर हैं। यहां की 85 प्रतिशत आबादी कृषि पर आश्रित हैं। खेतिहर किसान-मजदूर साल के छह माह कृषि कार्य से जुड़े रहने के बाद बाकी समय रोजगार हेतु बाहर चले जाते हैं या फिर घर में बेकार बैठे रहते हैं। यदि यहां के किसानों को मछली पालन के क्षेत्र में समुचित

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जानकारी दी जाए व सरकार द्वारा दिए जा रहे सुविधाओं से अवगत कराया जाए तो यहां के किसान मछली पालन की ओर जागरुक हो सकते हैं। जिससे उनको रोजगार भी मिलेगा वहीं आथिक समृद्धि भी आएगी। ऐसा नहीं है कि यहां के लोग मछली पालन से अनभिज्ञ हैं। सिर्फ उन्हें प्रोत्साहन की जरुरत है।

हालांकि जिला मत्स्य पदाधिकारी सरकार पोषित योजनाओं को लागू करने का दावा करते हुए कहते हैं कि किसानों के बीच तीन प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही है। मत्स्य पदाधिकारी के अनुसार जिले में नए तालाब के निर्माण, आद्र जल भूमि का विकास व नए तालाब के निर्माण पर प्रथम वर्ष इनपुट अनुदान देने की जानकारी दी।

मछली पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही है। नीली क्रांति के तहत सरकार द्वारा मछली व्यवसाय से जुड़े एससी-एसटी जाति के लोगों को अनुदान पर वाहन तक उपलब्ध कराने व तालाब निर्माण के लिए 50 फीसद अनुदान देने की भी योजना है। लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण किशनगंज जिला मछली पालन के क्षेत्र में पिछड़ता जा रहा है।

देशी मछली का स्वाद तो लोग भूल चूके हैं। प्रखंड के निवासी बसीरोद्दीन, महबूब आलम, ज्योति कुमार सहनी, गंगा कुमार सहनी, अशोक मांझी, गोविन्द लाल का कहना है कि यहां मछली पालन में किसानों को रुचि रहने के बाद भी विभागीय पदाधिकारियों की उदासीनता के कारण योजनाओं की जानकारी किसानों तक नहीं पहुंच पा रही है। अब नहीं दिखती देशी मछली: जिले में आंध्र प्रदेश व बंगाल की मछली का बड़ा बाजार बन गया है। जिस कारण लोग यहां देशी मछली का स्वाद भूल चुके हैं। देशी मछली की मांग रहने के बावजूद उन्हें मछली नहीं मिल पाती है। कुछ साल पूर्व तक हाट- बाजारों में मांगुर, कबई, ¨सधी, पैना, बुआरी सहित कई प्रजातियों की मछलियां मिलती थी। जिसका स्वाद लेना लोग नहीं भूलते थे। लेकिन अब ये मछलियां दिखाई नहीं पड़ रही है। अब मार्केट में आंध्रा मछली की भरमार है। इस व्यवसाय से जुड़े ज्योति कुमार सहनी व गंगा कुमार सहनी का कहना है कि लोकल मछली के अभाव में बाहर से मछली मंगा कर बेचनापड़ रहा है। आंध्रा रेहु मछली मार्केट में 130-140 में बिक रहा है। जबकि देशी रेहु 160-170 रुपये प्रति किलो खरीदने पर भी तैयार है। परंतु यहां मांग के अनुसार देशी मछली का आपूर्ति नहीं होने पर बाहरी मछली पर आश्रित हो गए हैं। प्रखंड क्षेत्र के किसानों का कहना मानें तो यदि विभागीय स्तर पर समुचित जानकारी जैसे मछली का संरक्षण व संव‌र्द्धन के साथ सरकार द्वारा दिए जा रहे आसानी पूर्वक सुविधा मुहैया कराया जाए तो यहां से मछली जिला या प्रदेश में ही नहीं बल्कि दुसरे प्रदेश में भी निर्यात किया जा सकता है। जरुरत है, सिर्फ किसानों को

मत्स्य पालन के क्षेत्र में जागरुक करते हुए सरकारी सुविधा प्रदान करने की।


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