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इतिहास में ही सिमटते जा रहा है पकरैल पशु अस्पताल

खगड़िया। पकरैल मैरा सड़क किनारे अवस्थित पकरैल पशु अस्पताल आज भी अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है। लगभग त

By Edited By: Published: Sat, 10 Oct 2015 04:06 PM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2015 04:06 PM (IST)
इतिहास में ही सिमटते जा रहा है पकरैल पशु अस्पताल

खगड़िया। पकरैल मैरा सड़क किनारे अवस्थित पकरैल पशु अस्पताल आज भी अपने उद्धारक की बाट जोह रहा है। लगभग तीन दशक पूर्व यह अस्पताल सर्किल नंबर एक के विभिन्न पंचायतों का एक मात्र पशु चिकित्सालय था। इसकी लगभग 15 कट्ठा जमीन आज भी इतिहास का गवाह है। ग्रामीणों ने बताया कि कभी यहां पशुओं के लिए ऑपरेशन थियेटर, कम्पाउंडर रूम, डाक्टर चेम्बर व यहां के तमाम कर्मियों के लिए आवास तक हुआ करता था। सरकारी तंत्र के ढीलापन के चलते तीन दशक पूर्व यहां के पशु चिकित्सकों का तबादला तो अन्यत्र कर दिया गया, अपितु किसी चिकित्सक को आज तक वहां नहीं भेजा गया। कुछेक कम्पाउंडर का बदली हो गया और कुछ एक अवकाश ग्रहण कर गए। फिर यहां आज तक कोई नहीं आया और अस्पताल मृतप्राय हो गया। चारों तरफ घास-फूस है। इसी बीच पशु अस्पताल का भवन जर्जर अवस्था में अपना सिर उठाए हुए है। खंडहर के ईंट आदि धीरे धीरे गायब हो रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि आज जब बिहार सरकार पशु चिकित्सालय को पुनर्जीवित कर रही है तो उसमें इस अस्पताल का नाम आखिर क्यों नहीं आ रहा है। जबकि, बीमारी के कारण काफी पशु मर रहे हैं। यहां से आठ किलोमीटर दूर महेशखूंट में पशु चिकित्सालय है, जहां बीमार पशुओं को ले जाना सभी किसानों के बस में नहीं है। बहरहाल, इस क्षेत्र में गाय-भैंस की संख्या घटती जा रही है।

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क्या कहते हैं लोग

पूर्व पंसस प्रमोद यादव, डा. नवीन गुप्ता, केदार सिंह, अमित कुमार, भगवान यादव आदि का कहना है कि यदि जनप्रतिनिधि रूचि लिए होते तो पशु अस्पताल पकरैल को संजीवनी मिल गयी होती। परंतु इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।


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