जिले में 3577 हैं बच्चे निश्शक्त
खगड़िया, संवाद सूत्र: अपंग है तो क्या, खुद को काबिल बना लेंगे। वे भी सामान्य लोगों की तरह जिंदगी को जी सकेंगे। शिक्षा विभाग निश्शक्त बच्चों को सशक्त बनाने में जुटी हुई है।
एक ओर जहां शिक्षा विभाग निश्शक्त बच्चों का जिले के सातों प्रखंडों से सर्वेक्षण कराया है। वहीं ऐसे बच्चों को नियमित विद्यालय पहुंचाने में सहयोग करने वाले माता-पिता व अभिभावकों का भी हौसला बढ़ रहा है कि उनकी क्षमता नहीं होने के बावजूद वे अपने-अपने बच्चों को विद्यालय नियमित पहुंचा रहे हैं। चयनित बच्चों को साल में विभाग द्वारा 2500 रूपये सहयोग राशि दी जाती है तो एलिमको संस्था द्वारा भी ट्राई साइकिल, बैशाखी व श्रवण यंत्र उपलब्ध करा के इन बच्चों को दक्ष बनाने की योजना को मूर्तरूप दिया जा रहा है।
शिक्षा विभाग द्वारा इस साल जिला के सातों प्रखंडों में कराए गये सर्वेक्षण के दौरान सामने आया है कि 3577 बच्चे विभिन्न रूप से निश्शक्त हैं। इन बच्चों का सर्वेक्षण संसाधन शिक्षक व बीईओ के सहयोग से कराया गया। इनमें गंभीर रूप से निश्शक्त बच्चों को चिन्हित करने को लेकर प्रयास जारी है।
नियमित विद्यालय आने
पर मिलेगा लाभ
ऐसे निश्शक्त बच्चे जिन्हें उनके माता-पिता,अविभावक नियमित विद्यालय पहुंचाते हैं। उनका चयन किया जाता है। पिछले साल ऐसे 60 बच्चों का चयन किया गया था। इस साल 170 बच्चों को इस लाभ से लाभांवित करने को लेकर लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जिन्हें 2500 के दर से साल में राशि दी जाएगी।
25 बच्चियां कस्तूरबा में है
निश्शक्त 25 बच्चियों का नामांकन कस्तूरबा बालिका विद्यालय चौथम में कराया गया है। ये बच्चियां श्रवण निश्शक्त बताए जाते हैं। परबत्ता में भी यह कार्यक्रम प्रस्तावित है। विद्यालय में ऐसे बच्चों के ठहराव को लेकर संसाधन शिक्षक व बीईओ को खास निर्देश है।
क्या कहते हैं अधिकारी
जिला शिक्षा पदाधिकारी श्यामबाबू राम व परियोजना डीपीओ संजीव कुमार के अनुसार परियोजना का यह प्रयास है कि 6 से 14 आयु वर्ग के निश्शक्त बच्चों को शिक्षा-दीक्षा दिलाकर आत्मनिर्भर बनाया जाय। इसके लिए प्रावधान के तहत प्रयास भी किये जा रहे हैं।