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हर किसी की रही खता, तालाबों का मिट गया पता

आम आदमी की लापरवाही के कारण आज तलाबों को बचाने की कवायद गोष्ठी और बैठक तक सिमट के रह गई है। समाजिक उपेक्षा के कारण ताल-तलैये विलुप्त होते जा रहे हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Wed, 22 Mar 2017 06:41 PM (IST)Updated: Wed, 22 Mar 2017 06:52 PM (IST)
हर किसी की रही खता, तालाबों का मिट गया पता
हर किसी की रही खता, तालाबों का मिट गया पता

कटिहार [नंदन कुमार झा]। मानव जीवन से सीधा जुड़ाव के बावजूद तालाब व सरोवरों की सुधि किसी स्तर से नहीं ली गयी। फलाफल क्रमवार ढंग से इन तालाबों व सरोवरों का अस्तित्व मिटता जा रहा है। हर वर्ष कोई न कोई तालाब और सरोवर अपना अस्तित्व खो रहे हैं। इसको लेकर आम लोगों से लेकर राजनीतिक एवं प्रशासनिक स्तर पर लगातार उदासीनता बरती जा रही है।

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हालांकि तालाब व सरोवर के जीर्णोद्धार को लेकर कई योजनाएं संचालित तो हुई लेकिन उसका भी कोई खास असर देखने को नही मिला। मनरेगा योजना के तहत भी तालाबों के जीर्णोद्धार को लेकर पानी की तरह पैसे बहाये गये, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात रहे। लेकिन इसका कोई खास असर नहीं देखने को मिला है।

लोगों की बढ़ती जरूरत और लगातार उपेक्षा का शिकार होने के कारण तालाबों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। इसको लेकर न तो विभागीय अधिकारी कोई खास पहल दिखा रहे हैं और न ही लोगों को इसमें कुछ खास दिलचस्पी दिख रह है। संगोष्ठी व बैठक ही तालाबों को बचाने की कवायद सिमटी रही। उपेक्षा का दंश झेलने के कारण कई महत्वपूर्ण और सांस्कृतिक महत्व रखने वाले तालाब अपना अस्तित्व खो चुके हैं। 

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उपेक्षा के कारण मिट रहा तालाबों का अस्तित्व 
नदियां हो या तालाब व सरोवर इनकी सुधि नही ली जा रही है। लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहे तालाब और सरोवर हाशिये पर है। वर्षों पूर्व तक पूर्वजों द्वारा बनवाए गये तालाब व सरोवर को लोग उनकी निशानी और परिवार की शान समझकर संजोया करते थे। लेकिन शहरी से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक जमीन के बढ़ते व्यवसायिकरण से भी इसपर व्यापक असर पड़ा है।

खासकर आवासीय परिसर और व्यवसायिक स्थल के आसपास मौजूद तालाबों पर तो जैसे लोगों की वक्र ²ष्टी पड़ गयी है और देखते ही देखते अधिकांश तालाब पहले भरवाए गये और बाद में उनका उपयोग आवासीय परिसर या अन्य कार्य के लिए किया जाने लगा। जबकि तालाबों के जीर्णोद्धार और इसे भरवाने को लेकर भी नियम और प्रावधान है। लोगों की उदासीनता के साथ ही प्रशासनिक स्तर पर कोई विशेष पहल नहीं होने के कारण लगातार तालाबों का क्षय हो रहा है।

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तालाबों के बचाने को लेकर नहीं उठी आवाज
क्षेत्र में ऐसे कई जलाशय, पोखर व तालाब है जिनसे सैकड़ों लोग लाभान्वित होते रहे हैं। बावजूद इनकों बचाने के लिए किसी भी स्तर से कोई आवाज आज तक नहीं उठी है। और तो और सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व वाले धरोहरों को संजोने के लिए भी किसी संस्था या स्थानीय लोगों की विशेष पहल नहीं हुई है।

हालांकि इक्के दुक्के लोग इस दिशा में प्रयास भी किया लेकिन यथोचित सहयोग के अभाव में उनकी भी आवाज दब गई। जबकि कई जलक्षेत्र पर भू माफिया की नजर होने के कारण उसकी बंदोबस्ती कराकर उसे निजी कार्य के लिए उपयोग किया जा रहा है। इसको लेकर किसी भी स्तर से लोग गंभीर नही हैं।

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