कम वर्षापात में बेहतर है धान की सीधी बुआई
कटिहार : बदलते मौसम व जलवायु परिवर्तन के साथ ही वर्षापात में लगातार हो रही कमी के कारण
कटिहार : बदलते मौसम व जलवायु परिवर्तन के साथ ही वर्षापात में लगातार हो रही कमी के कारण धान की फसल प्रभावित होती है। जिले में लगभग 70 हजार हेक्टेयर में धान की खेती होती है। पश्चिम बंगाल से लगती सीमा के कारण जिले में धान की खेती को किसान प्राथमिकता देते हैं। अनुकूल मौसम व उपजाऊ मिट्टी में यहां बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है। विगत कुछ वर्षों में वर्षापात में कमी के कारण धान की उपज प्रभावित हुयी है। वर्षापात औसत के अनुरूप नही होने के कारण किसान पंप सेट के माध्यम से अपनी फसल को बचाते हैं। इसमें अधिक लागत और श्रम के कारण मुनाफा नही मिलने के कारण किसानों को लगातार नुकसान हो रहा है।
बदलते परिवेश में कृषि वैज्ञानिकों ने धान की सीधी बुआई तकनीक को लेकर किसानों को जागरूक कर रहे हैं। धान की सीधी बुआई से जहां कम वर्षापात में अच्छी उपज प्राप्त होती है। इस विधि से धान की खेती करने में खर पतवार व पोषक तत्वों का विशेष ध्यान रखना होता है। हालांकि शुरुआती प्रबंधन कर किसान कम लागत में अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
धान की सीधी बुआई का शुरुआती प्रबंधन :
धान की सीधी बुआई के लिए 15 जून से 10 जुलाई के मध्य का समय उपयुक्त माना जाता है। इसके लिए खेतों की तैयारी पर विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। इसके लिए खेत का समतल होना आवश्यक है। किसान कम रकबा में देशी हल से बुआई कर सकते हैं। सीधी बुआई में गेहूं की तरह ही धान की बीज को भी डाला जाता है। बीज की बुआई दो से तीन सेमी की गहराई में की जानी चाहिए। इसके लिए अल्प एवं मध्यम अवधि के किस्मों का चुनाव करना चाहिए। धान की सीधी बुआई के लिए राजेन्द्र मंसुरी, राजेन्द्र भगवती, पूसा 834, नरेन्द्र 97 आदि किस्में लगा सकते हैं। इसके लिए मध्यम दानों के बीज 15 से बीच एवं मोटे दानों के बीज 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से लगाना चाहिए।
जरूरी है खरपतवार नियंत्रण :
धान की सीधी बुआई तकनीक में खरपतवार नियंत्रण का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। बुआई के बीस दिनों एवं चालीस दिनों के बाद ¨सचाई की आवश्कता होती है। वर्षापात होने पर ¨सचाई की जरूरत नही होती। प्रति हेक्टेयर के लिए 120 किलोग्राम नेत्रजन, 60 किलोग्राम स्फूर, 40 किलोग्राम पोटाश की आवश्कता होती है। खर पतवार का प्रकोप बढ़ने पर 400 एमएल पेन्डीमिथिलीन को दो सौ लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से इसका प्रकोप नही होता है। कीट व्याधि का प्रकोप होने पर तत्काल इसका उपचार कराना आवश्यक होता है।
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बदलते मौसम व जलवायु परिवर्तन में धान की सीधी बुआई बेहतर तकनीक है। धान की सीधी बुआई में लागत व श्रम औसत बीस फीसदी तक कम होता है। किसान धान की सीधी बुआई कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। इस तकनीक को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। बड़ी संख्या में किसान धान की सीधी बुआई कर रहे हैं।
पंकज कुमार, कृषि वैज्ञानिक, कटिहार ।