यहां 26 वर्षों से 2 कमरों में मौजूद है 35 सौ मृतकों की 'आत्मा', जानिए क्यों?
कटिहार के अस्पताल में दो कमरों में पैंतीस सौ आत्माएं बंद हैं, जिन्हें न्याय की अब भी आस है। चौबीस सालों से ये आत्माएं और उनके परिजन आज भी न्याय की उम्मीद में भटक रहे हैं।
पटना [जेएनएन]। कटिहार जिले में पुलिस एवं अस्पताल प्रबंधन की उदासीनता के कारण 26 वर्षो से जांच के अभाव में 35 सौ आत्माएं न्याय की आस में भटक रही है। कटिहार के सदर अस्पताल के परिसर में दो कमरों में लगभग 3 हजार 5 सौ मृतकों का बिसरा जांच के नाम पर रखा गया है लेकिन पुलिस और अस्पताल प्रबंधन इन बिसरा को जांच के लिए भेजता है।
इन दो कमरों में पैंतीस सौ मृत आत्माएं आज भी न्याय के लिए भटक रही हैं। इस बारे में अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि पुलिस बिसरा को जांच के नहीं भेजती है। पोस्टमार्टम के बाद बिसरा को जब्त कर रखा जाता है ताकि पुलिस उसे जांच के लिए फोरेंसिक के पास भेजे लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
पुलिस की कार्यशैली के कारण मृतक के परिजनों को व मृत आत्माओं को आज तक न्याय नहीं मिल सका है। संयोगवश तत्कालीन रेलकर्मी स्व. राहुल की हत्या के बाद उसके बिसरा को भी जब्त किया गया और आननफानन में पुलिस ने उसे जांच के लिए भेज दिया था।
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बिसरा की जांच की जब रिपोर्ट आयी तो वह चौंकाने वाली थी। जांच रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया गया है कि राहुल की मौत पानी में डूबने से नहीं हुई है। पुलिस और मेडिकल बोर्ड के उलझन के कारण न तो राहुल के आत्मा को और न ही उसके परिजनों को न्याय मिल सका है।
पुलिस अधीक्षक डा. सिद्धार्थ मोहन जैन ने सिविल सर्जन से मेडिकल बोर्ड द्वारा स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। उसके जबाब में मेडिकल बोर्ड ने जो रिपोर्ट दिया है वह भी चौंकाने वाला है। मेडिकल बोर्ड ने कहा कि पीएमसीएच के हिस्टोपैथोलॉजिकल और फारेंसिक रिपोर्ट के आधार पर राहुल की मौत केवल पानी में डूबने या किसी जहरीला पदार्थ खाने व खिलाने से नहीं हुई है।
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इसकी वजह से मौत के कारण को पूरी तरह से स्पष्ट करने के लिए लिए वे सक्षम नहीं है क्योंकि पोस्टमार्टम के समय मृत राहुल के शरीर के डिकंपोज हो जाने से शरीर पर किसी प्रकार का जख्म का निशान नहीं मिला था।
क्या कहना है डॉक्टरों का?
डीएस डा. योगेंद्र प्रसाद भगत की माने तो डाक्टरों की टीम जब मौत का कारण स्प्ष्ट करने में अक्षम होते हैं तब वे मृतकों का बिसरा को सुरक्षित रख देते हैं। पुलिस की ओर से भेजी लाश का पोस्टमार्टम करते समय पुलिस द्वारा मौत का कारण से संबंधित बात जब डाक्टर के सामने नहीं दिखता है तब वे मृतकों का बिसरा को सुरक्षित रख देते हैं। बिसरा के रुप में मृतक का लिवर, हृदय, स्पीलिन, स्टोमेक तथा किडनी को सुरक्षित रखा जाता है।
अस्पताल में वर्ष 1990 से मृतकों का बिसरा सुरक्षित है
विभागीय सूत्रों के अनुसार सदर अस्पताल में वर्ष 1990 से मृतकों का बिसरा सुरक्षित रखा जा रहा है। अस्पताल परिसर में दो कमरा है। एक पुराना कमरा जिसमें लगभग 25 सौ मृतकों का बिसरा रखा हुआ है। दूसरा नया कमरा जिसमें आठ सौ से एक हजार मृतकों का बिसरा रखा हुआ है। अधिकांश बिसरा अज्ञात लोगों से ही संबंधित है।
कुछ बिसरा जहर खाने या खिलाने से हुई मौत के बाद जिसका पोस्टमार्टम कराया गया था वैसे लोगों का बिसरा रखा हुआ है। पुराना कमरा में रखा हुआ जो बिसरा शायद जांच के लायक भी नहीं बचा है। नया कमरा में रखा गया बिसरा को जांच में भेजने में पुलिस आनाकानी करती रहती है। यही कारण है कि बिसरा रुपी मृतकों की आत्मा न्याय के लिए भटक रही है।
बिसरा रखने की नहीं है व्यवस्था
सरकारी नियम के अनुसार मृतकों का बिसरा को सुरक्षित रखने के लिए वातानुकूलित भवन होना चाहिए। कमरा बिल्कुल साफ-सुथरा रहना चाहिए। कमरा का तापमान न्युनतम 8 डिग्री सेल्सियस तथा अधिकतम 25 डिग्री सेल्सियस रहना चाहिए।
बिसरा को मृतक के शरीर से बाहर निकालने के बाद उसे प्लास्टिक के डिब्बा में बंद करने से पहले उसमें समुचित मात्रा में फोर्मेलिन नामक रासयनिक पदार्थ डालना चाहिए। प्लास्टिक के डिब्बा को एक लकड़ी के बॉक्स में रखा जाना चाहिए। लेकिन यहां ऐसे व्यवस्था नहीं है।
जीर्ण-शीर्ण भवन में बिसरा को रखा गया है। अस्पताल के डीएस की माने तो बिसरा को प्लास्टिक के डिब्बा में फोर्मेलिन रासायनिक पदार्थ रखने के बाद ही उसे सुरक्षित रखा जाता है।
पुलिस की उदासीनता
एक वरीय पुलिस पदाधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि बिसरा जांच के लिए भेजने के लिए पांच से छह सौ रुपये लगता है। जिसे सरकार की ओर से धन राशि उपलब्ध नहीं कराई जाती है। वहीं दूसरी ओर कांड के अनुसंधानकत्र्ता विरोधी पार्टी से पैसे लेकर जांच को प्रभावित करने के लिए बिसरा को फोरेंसिक के पास समय पर नहीं भेजती है।
एसपी ने कहा - दो सौ से अधिक बिसरा की हुई है जांच
एसपी ने बताया कि उनके कार्यकाल में दो सौ से अधिक मृतकों का बिसरा जांच के लिए फोरेंसिक के पास भेजा गया है। जिसमें आधा से अधिक बिसरों का जांच रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है। तत्कालीन सीएस ने आठ सौ बिसरा रहने की जानकारी दी थी। वर्तमान सीएस व फोरेंसिक विभाग से कई बार बिसरा के जानकारी मांगी गई है लेकिन जानकारी अप्राप्त हैं।