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आफत बनी गाजर घास

संवाद सूत्र, अमदाबाद (कटिहार) : प्रखंड क्षेत्र में किसानों के लिए गाजर घास शनै:-शनै: नयी मुसीबत बनत

By Edited By: Published: Thu, 21 May 2015 01:00 AM (IST)Updated: Thu, 21 May 2015 04:30 AM (IST)
आफत बनी गाजर घास

संवाद सूत्र, अमदाबाद (कटिहार) : प्रखंड क्षेत्र में किसानों के लिए गाजर घास शनै:-शनै: नयी मुसीबत बनती जा रही है। कुछ वर्ष पूर्व से ही गाजर घास जिसे पार्थेनियम भी कहते हैं। यह खेतों में उग कर अब तेजी से फैल रहा है। प्रखंड के विभिन्न स्थानों के कृषि योग्य भूमि व परती भूमि में ये वृहत्त रूप से देखा जा सकता है। यह घास इंसान के साथ-साथ मवेशियों के लिए भी हानिकारक है। जानकारी के अनुसार भारत सरकार ने तकरीबन 50 के दशक में विदेश से गेहूं का आयात किया था। इसमें इंग्लैंड से आयातित गेहूं के साथ पार्थेनियम यानि गाजर घास के बीज भी यहां आ गए थे। बताते चलें कि पार्थेनियम के पौधों की ऊंचाई तीन से चार फीट तक की हो जाती है। इसमें छोटे-छोटे सफेद फूल भी होते हैं। इसके फूल व तना में कई हानिकारक तत्व मौजूद होते है। इसके संपर्क में आने से फसलों की उपज क्षमता भी घट जाती है व फसल रोगग्रस्त हो जाती है।

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मानव पर प्रभाव :

इसके संपर्क में आने पर एलर्जी, एग्जिमा, खुजली व अन्य तरह के चर्म रोग हो सकते हैं।

मवेशियों पर प्रभाव :

जानकार बताते हैं कि गाजर घास को मवेशियों को चारे के रूप में नहीं खिलाना चाहिए। इससे कभी-कभी मवेशियों की मौत भी हो सकती है या उनके दूध में कमी आ सकती है।

अन्य ग्रामीण नाम :

गाजर घास (पार्थेनियम) को गांवों में सफेद चांदी, सफेद टोपी का पौधा के नाम से भी इसे जाना जाता है।

कैसे हो बचाव :

जानकारी के अनुसार यह पौधा जहां होता है। पौधे के बड़े होने पर इसके बीज झड़ जाते हैं तथा हवा, पानी व अन्य माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच जाते हैं। अगर गाजर घास खेतों में परती जमीन या आसपास उगे तो इसे जड़ से उखाड़ कर जला देने से ही यह नष्ट होती है।


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