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कटिहार में 'जयचंदों' की कट जाती थी नाक

प्रकाश वत्स, कटिहार: जंग-ए-आजादी में कटिहार जिले की भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। शहर की हृद

By Edited By: Published: Sun, 25 Jan 2015 02:20 AM (IST)Updated: Sun, 25 Jan 2015 04:11 AM (IST)
कटिहार में 'जयचंदों' की कट जाती थी नाक

प्रकाश वत्स, कटिहार: जंग-ए-आजादी में कटिहार जिले की भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। शहर की हृदय स्थली शहीद चौक से लेकर कुर्सेला में मौजूद गांधी आश्रम के साथ ही कई अन्य पावन स्थली बलिदान की गाथा स्वत: कह रही है। वर्षो तक फिरंगियों से लोहा लेने के क्रम में जिले के कई वीर सपूत शहीद हो गये तो कई को फांसी पर चढ़ा दिये गये। कई का घर-बार व परिवार उजड़ गया, लेकिन आजादी पाने का जज्बा घटने की बजाय बढ़ता ही चला गया। अंतत: हमें आजादी भी मिली।

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वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी सह कवि सत्यनारायण सौरभ उन लोगों में शामिल हैं। जिसने उसे पूरे दौर को नजदीक से जिया है। सेनानियों के इस बड़े जत्थे का एक हिस्सा कभी कवि सौरभ भी हुआ करते थे। उन्होंने उस दौर की जो कुछ कहानी बतायी, सचमुच वह रोंगटें खड़ा करने वाले हैं। श्री सौरभ के अनुसार आजादी के जंग में पुराना पूर्णिया जिला में सेनानियों का एक बड़ा दल हुआ करता था। क्रांतिकारी आजाद दस्ता के नाम से सक्रिय सेनानियों के इस संगठन में डा. कुलदीप झा, कमलनाथ झा, कुलदीप सिंह, खुशीलाल झा, हितलाल पोद्दार, नक्षत्र मालाकार, भोला पासवान शास्त्री, लक्ष्मीनारायण सुधांशु, कमलदेव नारायण सिंहा, मोहित लाल पंडित सहित कई अन्य सेनानियों का यह संगठन फिरंगियों के लिए सिर दर्द बन गया था। इतना ही नहीं अंग क्षेत्र में फिरंगियों को नाक में दम करने वाले परशुराम सेना के परशुराम सिंह, सियाराम सिंह आदि का जुड़ाव भी इस जत्थे से था। चुकि खुशीलाल झा फौज से भागकर इस संग्राम में शामिल हुए थे, इसलिए उनको हथियार व बम बनाने की महारत हासिल थी। उनके द्वारा बनाये हथियार व बम सहरसा, बांका व किशनगंज तक पहुंचते थे। श्री सौरभ ने बताया कि फिरंगियों की सक्रियता के चलते 1942 के करीब सेनानियों के लिए काम करना मुश्किल हो रहा था। कुछ सेनानियों की गिरफ्तारी भी हो गयी। इसमें सेनानियों को पकड़वाने के लिए कुछ लोगों ने फिरंगियों से मोटी रकम ले ली थी। इसकी भनक थोड़े उग्र समझे जाने वाली सेनानी नक्षत्र मालाकार को लग गयी। इसमें उस समय के एक जमींदार भी थे। इस आक्रोश में सेनानी मालाकार ने एक ही दिन में ऐसे तीन लोगों की नाक काट डाली। पुन: इसी आरोप में उन्होंने लगभग एक दर्जन लोगों की नाक काट डाली। इस पर बाद में सेनानियों की एक आपात बैठक हुई और सेनानी मालाकार को समझा-बुझाकर इससे परहेज की सलाह दी गयी।

बाराती की शक्ल में पहुंचाये जाते थे हथियार

सेनानी सौरभ ने बताया कि जब फिरंगियों ने सेनानी की गतिविधि पर नजर रखने के लिए चप्पे-चप्पे पर पुलिस की तैनाती कर दी थी, तो सेनानियों ने एक जगह से दूसरे जगह हथियार पहुंचाने के लिए नायाब तकरीब अपनाया था। सेनानी में ही किसी को दूल्हा बनाया जाता था और कुछ बाराती बन जाते थे। फिर बैलगाड़ी पर पुआल डालकर उसके अंदर ही हथियार छिपा कर गंतव्य तक पहुंचाया जाता था।


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