ईमानदारी की खरी-खरी, बेईमानी की बेशर्मी
प्रशासनिक हलकों में बेईमानी बनाम ईमानदारी का द्वन्द चलता रहता है। आम आदमी का सबाका बेईमानी से हीं अधिक होता हैं, क्योंकि ईमानदारी यहां दुर्लभ होती जा रही है।
कैमूर। प्रशासनिक हलकों में बेईमानी बनाम ईमानदारी का द्वन्द चलता रहता है। आम आदमी का सबाका बेईमानी से हीं अधिक होता हैं, क्योंकि ईमानदारी यहां दुर्लभ होती जा रही है। परंतु ईमानदारी में एक चमक होती है, एक स्पार्क होता है। जिसे आम आदमी भी महसूस करता है, व संबधित अधिकारी की ईमानदारी उसके मनो-मस्तिष्क में कौंधती है। जिले में बेईमान अधिकारी-कर्मी की लंबी लिस्ट के विपरीत ईमानदारों की गिनती उंगलियों पर की जा सकती है, परंतु ईमानदारी जब बोलती है तो सबकी बोलती बंद हो जाती है। गत विक इंड को जिले के विभागीय कार्यक्रम में इसी प्रकार का परिदृश्य देखने को मिला। मंच पर जिले के सर्वोच्च अधिकारी व विभागीय अधिकारी बैठे हुए थे। विभागीय अधिकारी ने विभाग की कुछ गतिविधियों के विषय में जानकारी दी। उपस्थित किसानों में से एक ने कुछ सवाल उठाएं। जिले में ईमानदारी के रूप में चर्चित उस अधिकारी को ये बात नागवार गुजरी। उन्होंने मंच पर हीं कहा कि अनर्गल आरोप लगने पर वो अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। ईमानदारी के इस खरी-खरी से जिले के सर्वोच्च पदाधिकारी भी अवाक रह गए, उन्होंने बात को संभाला, तब जा मामला शांत हुआ।
ईमानदारी के इस खरी-खरी के विपरीत बेईमानी कितनी बेशर्म होती है, यह भी याद कर लीजिए। कुछ सप्ताह पूर्व जिले के एक चिकित्सक के फिटनेस सर्टिफिकेट बनाने के लिए छात्रों से रिश्वत लेते वीडियो खूब चर्चा में था। तब उन आरोपों को नकारते हुए चिकित्सक ने एक स्थानीय संवाददाता से बेशर्मी से कहा था कि वो रिश्वत नहीं खुशमिजाजी ले रहे थे। कुछ माह पूर्व जिले के एक उच्च अधिकारी के यहां निगरानी की छापेमारी की खूब चर्चा हुयी थी। तब भी बेशर्मी का एक नजारा देखने को मिला था। जब उक्त अधिकारी को निगरानी के अधिकारी हिरासत में ले पटना ले जा रहे थे, तब एक छायाकार उसकी तस्वीर लेने लगा। तब गुस्से में भ्रष्टाचार के आरोप में हिरासत में लिए गए अधिकारी ने छायाकार को दो कौड़ी का आदमी कहा था। अब इन बेशर्म भ्रष्टों को कौन बताए कि दो कौड़ी का आदमी कौन है!