Move to Jagran APP

आज पूजे जायेंगे शिल्प कला के सृजनहार

By Edited By: Published: Tue, 16 Sep 2014 06:52 PM (IST)Updated: Tue, 16 Sep 2014 06:52 PM (IST)
आज पूजे जायेंगे शिल्प कला के सृजनहार

संस, मोहनिया (कैमूर) : आज धूमधाम से भगवान विश्वकर्मा की पूजा यानी 17 सितम्बर को शिल्पकला के देवता भगवान विश्वकर्मा की विधिवत पूजा अर्चना होती है। इनकी पूजा से समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। विश्वकर्मा को सृष्टि कर्ता ब्रम्हा का प्रपौत्र माना जाता है। इनकी सविधि पूजा का विधान वैदिक काल से ही चला आ रहा है। यह परंपरा उपनिषद् काल रामायण-महाभारत काल से लेकर आज तक कायम है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल की सभी राजधानिया भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाई है। सतयुग का स्वर्ग लोक त्रेता युग की लंका (स्वर्ण नगरी ) द्वापर की द्वारिका तथा कलियुग का हस्तिनापुर आदि का निर्माण देवलोक के शिल्पी विश्वकर्मा ने ही किया था। ये वास्तुकला के अपूर्व नमूने हैं। देवघर स्थित बाबाधाम का शिवमंदिर (द्वादस ज्योर्तिलिंग) और कृष्ण सखा सुदामा की नगरी सुदामा पुरी की रचना विश्वकर्मा पूजा के पश्चात आरंभ हुई। ऐसी कथा है कि सृष्टि के आरंभ में सर्वप्रथम भगवान विष्णु जब क्षीर सागर में शेषनाग पर अवतरित हुए थे उसी समय उनकी नाभि से चतुर्भुज भगवान ब्रम्हा प्रकट हुए। ऐसी मान्यता है कि धर्म की वसु नामक स्त्री से अष्ट वसुओं में से वास्तु सातवें पुत्र थे, जो शिल्प विद्या से पारंगत थे। उन्हीं के पुत्र विश्वकर्मा कहलाये। कालांतर में अपने पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य हुए। जो आज भी विश्व प्रसिद्ध है। भगवान विश्वकर्मा एक ऐसे देवता के रूप में जाने जाते हैं, जो शिल्प विद्या एवं कला कौशल द्वारा देवता और मनुष्य दोनों की समय समय पर मदद करते है। उनके पांच पुत्र थे। मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ । इनमें मनु ने लोहे का मय ने लकड़ी का, त्वष्टा ने कांसे का, शिल्पी ने ईट और देवज्ञ ने सोने और चांदी का कार्य किया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.