आदिवासियों के गांव से निकली नेशनल खिलाड़ी
जमुई। नक्सली घटना और नक्सली के नाम पर अब जमुई को हर कोई जानने और पहचानने लगा है।
जमुई। नक्सली घटना और नक्सली के नाम पर अब जमुई को हर कोई जानने और पहचानने लगा है। इस पहचान को एक बार फिर आदिवासियों के नक्सल प्रभावित गांव बेला से निकलकर बच्चियों ने नई पहचान दी है। पिछले तीन वर्षों से जमुई की लड़कियां बिहार की टीम में अपना दबदबा बनाए हुए है। अभी 2017 में उड़ीसा में आयोजित हुए राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बिहार की टीम में बेला गांव की आशा मुर्मू, गीता मुर्मू के अलावा जमुई की हीरामणि हांसदा, प्रियंका शर्मा और सुप्रिया कुमारी ने खेलकर जमुई का मान बढ़ाया। इन बच्चियों के साथ बिहार की टीम ने नेशनल रग्बी फुटबॉल चैम्पियनशिप में तीसरा स्थान प्राप्त किया है। ये बच्चियां बताती हैं कि उन्हें ये मुकाम हासिल कराने में जमुई के ऑक्सफोर्ड स्कूल ने महती भूमिका अदा की है। रग्बी खेलने की कहानी भी कोच तथा फिजिकल शिक्षक अनिल कुमार सिन्हा तथा अनुराग कुमार ¨सह इस प्रकार बताते हैं कि एक दिन रग्बी संघ बिहार पटना से फोन आया कि जमुई से भी लड़कियों की रग्बी टीम भेजी जाए। टीम थी नहीं, ऑक्सफोर्ड स्कूल की ये लड़कियां फुटबॉल खेला करती थी। निर्णय हुआ कि फुटबॉल खेलने वाली लड़कियों को एक महीने के अंदर रग्बी के लिए तैयार कर दिया जाए। कड़े प्रशिक्षण के बाद जमुई की बालिका टीम पटना गई और पहले ही बार में दूसरा स्थान और दूसरे साल पहला स्थान बनाकर बिहार में अपनी पहचान बना ली। फिर इनमें से खिलाडि़यों का चयन बिहार के राज्यस्तरीय टीम में किया गया जो नेशनल चैम्पियनशिप में खेलकर जमुई का नाम रोशन कर रही है। इन लड़कियों को खेल के मामले में जमुई प्रशासन अथवा स्थानीय नेताओं से कभी पहचान, सम्मान और सुविधा तो नहीं मिली। इन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि दशकों पहले जमुई के चकाई, चन्द्रमंडीह और खैरा के जंगली इलाकों से खाली पैर खेलकर नाम कमाने वाली परम्परा अभी जमुई में मरी नहीं है।