अभिव्यक्ति की आजादी ने बदल दी पहचान
जमुई। बिखरे बाल, कंधे पर झोला, साइकिल से मिलों तक सफर करने वाले जमुई के बिहारी निवासी पंकज ¨सह की यही पहचान है।
जमुई। बिखरे बाल, कंधे पर झोला, साइकिल से मिलों तक सफर करने वाले जमुई के बिहारी निवासी पंकज ¨सह की यही पहचान है। घर की दहलीज पर बैठी महिलाओं व ग्रामीण युवाओं की आवाज को मुखर करने में पंकज ¨सह ने अपने दो दशक बिता दिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए पंकज ने सबसे पहले उन महिलाओं को संगठित किया जिन्हें मात्र चूल्हा चौका के लिए ही जाना और माना जाता था। इसकी शुरुआत पंकज ने 15 वर्ष पूर्व खैरा प्रखंड के दाबिल पंचायत से की। जहां की निरक्षर महिलाओं को अपनी आवाज बुलंद करने के लिए संगठित किया। साथ ही उन्हें सशक्त करने के लिए स्वयं सहायता समूह बनाया। जिसका परिणाम हुआ कि महिलाओं ने 15 साल पूर्व दाबिल पंचायत में शराबबंदी लागू करने के लिए आवाज बुलंद की थी। दाबिल जमुई का पहला पंचायत बना जहां महिलाओं ने अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता का इस्तेमाल करते हुए शराब और शराब माफिया के विरोध में आन्दोलन शुरू किया। महिलाओं के लंबे संघर्ष व पंकज ¨सह के प्रयास से वहां शराब की भठ्ठियां धवस्त की गई और दाबिल जमुई का पहला पंचायत बना जहां पूर्ण रूप से शराबबंदी लागू की गई। पंकज यहीं नहीं रुके। उन्होंने गिद्धौर और बरहट प्रखंड के गुगुलडिह, पूर्वी गुगुलडिह, नेगडीमोह, सेवा, निचली सेवा, चन्द्रशेखर नगर सहित अन्य नक्सल प्रभावित सुदूर गांवों की महिलाओं को बोलने की आजादी और कुछ करने के लिए स्वयंसेवी संस्था परिवार विकास से जुड़कर प्रेरित किया। पंकज के इसी जुनून ने न जाने कब उनकी पहचान ही बदल डाली। वे पंकज ¨सह के बदले अब एसएसजी वाले भैया बन गए। इस इलाके में उनकी अगुआई में 134 एसएसजी समूह का गठन किया गया। जिसमें 1700 से अधिक महिलाएं शामिल हैं। अब यहां कि महिलाएं पंकज के प्रयास से स्वावलंबी बन चुकी हैं। समाज अब उन महिलाओं की बातों को सुनता है और उनकी बातों पर अमल करता है जिनकी बातें पहले अनसुनी कर दी जाती थी। वे महिलाएं आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। महिलाओं में आत्मसम्मान की भावना आ चुकी है। वे मुखर हो चुकी हैं। वे अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व को समझ चुकी हैं। यही कारण है कि उस क्षेत्र की महिलाएं अब अन्याय और अत्याचार का खुलकर विरोध करती हैं। बस पंकज तो यही चाहते थे कि नई क्रांति आ जाए। सब अपनी बोलने की ताकत को पहचाने। पंकज का अगला पड़ाव इस बार युवाओं पर केन्द्रित है। वे उनके अधिकार दिलाने में जुटे हैं। युवाओं का यूथ कल्ब बनाकर पंकज ने 14 से 22 साल के चार सौ से अधिक युवाओं को संगठित कर बाल विवाह, बाल मजदूरी जैसी समस्याओं के खिलाफ आन्दोलन बीते चार वर्षों से चला रहे हैं। आन्दोलन का इस बार भी माध्यम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही है। इसके द्वारा एक दर्जन से अधिक बाल विवाह को रोका जा चुका है। युवा अपने बाल अधिकार के लिए मुखर हो चुके हैं। पंकज बताते हैं कि उनका यह प्रयास बहुत ही छोटा प्रयास है। यदि समाज के अन्य लोग भी सामने आ कर अपने दायित्व का निर्वहन करें तो समस्याओं का समाधान तुरंत निकल आएगा।