विभागीय संरक्षण में पल-बढ़ रहे निजी क्लीनिक
जमुई। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सीय सुविधा मुहैया कराने के दावे के साथ निजी क्लीनिक पर शि
जमुई। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सीय सुविधा मुहैया कराने के दावे के साथ निजी क्लीनिक पर शिकंजा कसने की सरकारी कवायद फाइलों तक ही सिमटकर रह गई है। संसाधन विहीन निजी क्लिनिक में इलाज के नाम पर सरकारी कानून को ताक पर रखकर आर्थिक दोहन का खेल खेला जाता है। स्वास्थ्य विभाग सब कुछ जानकर भी अंजान है। क्लीनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट लागू होने के बाद भी यह एक्ट प्राइवेट अस्पतालों के महंगे इलाज और मनमानी पर शिकंजा कसने में नाकाम साबित हुआ है। हालांकि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ निजी अस्पतालों का विरोध है। आइएमए एक्ट के तहत कड़े प्रावधानों में रियायत और बदलाव की मांग करता रहा है।
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निजी अस्पताल का नहीं हुआ पंजीयन
सरकार ने निजी क्लीनिक के पंजीयन को लेकर नए कानून को लाया लेकिन यह प्रभावी नहीं हो सका। दरअसल विभाग की मिलीभगत से ही निजी क्लिनिक फलफूल रहा है। अहम बात यह है कि इसके आड़ में दर्जनों ऐसे निजी क्लिनिक हैं जहां डाक्टर के प्रमाण पत्र भी संदेह के दायरे में है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक एक भी क्लीनिक का पंजीयन नहीं किया गया है। जबकि जमुई शहर के अलावा झाझा, अलीगंज, सिकन्दरा, सोनो में दो दर्जन से अधिक निजी क्लिनिक, अल्ट्रासाउंड सेंटर संचालित हैं।
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छापामारी के बाद कार्रवाई सिफर
सरकार के कड़े रुख के बाद स्थानीय स्तर पर सिविल सर्जन के नेतृत्व में तीन सदस्यीय टीम ने मार्च में जिला मुख्यालय के आधा दर्जन से अधिक संचालित निजी क्लीनिक पर छापामारी अभियान चलाया। इस दौरान दो प्राइवेट अस्पताल में डॉक्टर की जगह कम्पाउंडर ऑपरेशन करते पकड़े गए तो मानक के अनुसार एक भी क्लीनिक के संचालन नहीं होने की बात सामने आई। कई क्लीनिक ऐसे भी पाए गए जहां आयुष डॉक्टर एमबीबीएस का बोर्ड लगाकर प्रेक्टिस करते पाए गए। बावजूद सिविल सर्जन स्तर से कार्रवाई सिफर रहा। विभाग ने उन मानक पूरा नहीं करने वाले निजी क्लीनिक संचालकों से स्पष्टीकरण मांगा और कार्रवाई की प्रक्रिया फाइलों में दब गई। जाहिर है कि कार्रवाई न होने के पीछे पदाधिकारियों की मंशा साफ नहीं है।
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इनसेट
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निजी क्लीनिक में होता है आर्थिक दोहन
जमुई : शहर के संजय बालोदिया का कहना है कि सरकारी अस्पताल में संसाधन के बावजूद समुचित इलाज न मिलने के कारण ही लोग निजी क्लीनिक में जाते हैं। जहां उनका आर्थिक शोषण होता है। विभाग ऐसे क्लीनिकों पर लगाम लगाने में विफल बना है।
शुकदेव केशरी ने कहा कि शहर में दर्जनों निजी क्लीनिक हैं जहां मरीजों की भीड़ है। लेकिन क्लीनिक के डाक्टर की डिग्री व क्लीनिक की व्यवस्था को कोई देखने वाला नहीं है। शहर में वैसे क्लीनिक भी हैं जहां मरीजों को जानवरों की तरह रखा जाता है और मोटी रकम वसूली जाती है।
सुषमा ¨सह बताती हैं कि सदर अस्पताल में हर दिन महिलाओं की भीड़ लगी रहती है। महिला चिकित्सक नियुक्त होने के बावजूद समय पर नहीं आती और अपने निजी क्लिनिक में इलाज करती है।
प्रदीप कुमार का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग वैसे प्राइवेट अस्पताल पर कार्रवाई करे जहां मानक के अनुसार व्यवस्था नहीं है। साथ ही उस प्राइवेट क्लीनिक की डिग्री भी सही नहीं है।