अजहर हत्याकांड के तीन आरोपी रिहा
संवाद सूत्र, खैरा (जमुई): लोजपा जिलाध्यक्ष मु. मोतीउल्लाह के पुत्र अजहर उल्लाह की हत्या के मामले में न्यायालय ने कांड के तीनों अभियुक्तों को आरोप मुक्त कर दिया। जिला सत्र न्यायाधीश ज्योति कुमार श्रीवास्तव ने सुनवाई पूरी करने के बाद गुरुवार को अपना फैसला सुनाया।
जानकारी के अनुसार मु. मोतीउल्लाह के पुत्र अजहर उल्लाह की हत्या 15 अगस्त 2010 को अपराधियों ने कर दी थी। हत्या उस वक्त की गई थी जब वह अपने दुकान के लिए दवा लेकर महाराजगंज चौक से लौट रहा था। हत्या महिसौड़ी रोड स्थित शिव-पार्वती ज्वेलर्स के पास की गई थी। इस घटना को लेकर मोतीउल्लाह ने जमुई थाना कांड संख्या 233/10 दर्ज कराई थी। जो बाद में सत्रवाद संख्या 233/11 के रूप में जिला जज के न्यायालय में विचारण हेतु आया। इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से चिकित्सक और अनुसंधानकर्ता सहित पांच गवाहों की गवाही कराई गई थी। गवाही व सुनवाई के बाद जिला जज श्री ने अभिलेख में उपलब्ध साक्ष्य और गवाहों के बयान का अवलोकन करने और दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कांड के तीन अभियुक्त वकील खान, मु. रहीम और मु. गुडडु को रिहा कर दिया। अभियोजन पक्ष की ओर से लोक अभियोजक गणेश रावत एवं पूर्व लोक अभियोजक अश्वनी कुमार यादव एवं बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता सीताराम सिंह, अमित कुमार और मु. मंसूर आलम ने अपनी-अपनी दलीलें पेश की।
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मोबाइल लोकेशन बना रिहाई का कारण
-स्वतंत्र गवाहों की नहीं हुई गवाही
खैरा : अजहर की हत्या का मामला पिता मु. मोतीउल्लाह द्वारा दर्ज कराया गया था। अपने बयान में उन्होंने बताया था कि उनके सामने अपराधियों ने पुत्र की हत्या गोली मारकर कर दी और जब वह हल्ला करते हुए दौड़े तो अभियुक्त भाग खड़े हुए। इस मामले में अभियोजन साक्षी के रूप में अनुसंधानकर्ता महावीर पासवान की गवाही हुई थी। उन्होंने न्यायालय में कहा था कि घटना के समय मोतीउल्लाह का मोबाइल संख्या 9955234898 का लोकेशन पुरानी बाजार लखीसराय में मिला था। अनुसंधानकर्ता ने घटनास्थल पर खून का धब्बा नहीं मिलने की बात कही। मातीउल्लाह ने घटनास्थल के पास बयान देने की बात कही। जबकि अनुसंधानकर्ता ने पोस्टमार्टम हाउस के पास बयान लेने की बात कही। इसके अलावा जिन तीन गवाहों की गवाही कराई गई न्यायालय ने उसे इंटरेस्टेड विटनेश मानते हुए कहा कि तीनों गवाह उसके पिता, मौसा और फुफेरे भाई हैं। इस मामले में किसी स्वतंत्र गवाह की गवाही नहीं होना भी रिहाई का एक आधार माना गया।
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मुझे नहीं मिला इंसाफ : मोतीउल्लाह
खैरा: अपने पुत्र अजहर उल्लाह की हत्या के फैसले पर मोतीउल्लाह ने असंतोष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि मेरे पुत्र की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। इंसाफ के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया परंतु इंसाफ नहीं मिला। उन्होंने उच्च न्यायालय में अपील करने की बात कही।
अभियुक्त को मिला था 167 का लाभ
खैरा : अजहर उल्लाह हत्याकांड में 19 अगस्त 2010 को दो अभियुक्त गुडडु व वकील ने न्यायालय में आत्मसमर्पण किया था। न्यायालय ने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। नियमानुसार न्यायिक हिरासत में 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र पुलिस द्वारा समर्पित किया जाना चाहिए। परंतु अनुसंधानकर्ता ने 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र समर्पित नहीं किया। परिणामत: दोनों अभियुक्तों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) के तहत जमानत मिल गई।
घटनाक्रम
15 अगस्त 2010 को 1:35 बजे- अजहर उल्लाह को गोली मारकर हत्या।
17 अगस्त 2010 - न्यायालय से तीनों अभियुक्तों के खिलाफ गैर जमानती वारंट निर्गत
18 अगस्त 2010 -अभियुक्तों के खिलाफ इस्तेहार जारी
19 अगस्त 2010 -अभियुक्तों के खिलाफ न्यायालय ने निर्गत किया कुर्की जब्ती का आदेश
19 अगस्त 2010-अभियुक्त गुडडु व वकील ने न्यायालय में किया आत्मसमर्पण
5 फरवरी 2011-अभियुक्त को 24 घंटे के लिए पुलिस रिमांड पर दिया गया।
18 नवम्बर 2010-पुलिस द्वारा आरोप पत्र समर्पित नहीं किए जाने के कारण धारा 167(2) के तहत गुडडु व वकील को जमानत मिला।
24 जनवरी 2011-काड के एक अन्य अभियुक्त मु. रहीम को आसनसोल जेल से जमुई न्यायालय में पेशी के बाद न्यायिक हिरासत में जमुई जेल भेजा गया।
16 अप्रैल 2011-पुलिस ने आरोप पत्र समर्पित किया और न्यायालय ने मामले में संज्ञान लिया।
17 अप्रैल 2014- जिला जज ने सभी तीन अभियुक्तों को आरोप मुक्त कर रिहा कर दिया।