बगैर ट्रैफिक पुलिस के सुरक्षित यातायात का दावा
वैसे गोपालगंज को जिला का दर्जा मिले 43 साल गुजर चुके हैं। इस अवधि में जिला मुख्यालय की आबादी एक लाख पार कर चुकी है।
गोपालगंज। वैसे गोपालगंज को जिला का दर्जा मिले 43 साल गुजर चुके हैं। इस अवधि में जिला मुख्यालय की आबादी एक लाख पार कर चुकी है। आबादी बढ़ी तो वाहनों की संख्या भी हर दिन बढ़ रही है। हर दिन बढ़ रहे वाहनों के चलते दुर्घटनाएं भी आम बात हो गई हैं। ऐसे में सुरक्षित यातायात की बातें भी स्वभाविक हैं। लेकिन यहां सुरक्षित यातायात के लिए पुलिस तक का अभाव है। बिहार पुलिस व होमगार्ड के जवान डंडे के बल पर जैसे तैसे वाहनों को नियंत्रित करने की जुगत में लगे रहते हैं। लेकिन संसाधन का अभाव, इनके समक्ष बड़ी समस्या के रूप में सामने आती है।
जिले की कुल आबादी वर्तमान समय में 27 लाख के करीब पहुंच गई है। लेकिन पूरे जिले में कहीं भी सुचारू तरीके से यातायात व्यवस्था की संचालन होता नहीं दिख रहा है। आलम यह है कि जिला मुख्यालय से लेकर सुदूर ग्रामीण इलाके, यहां तक कि हाईवे जैसे महत्वपूर्ण इलाके में भी यातायात के नियम हर दिन टूट रहे हैं। यहां सुरक्षित यातायात के प्रति बदइंतजामी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस जिले में यातायात का नियम तोड़ने वालों के विरुद्ध यहां कोई भी कार्रवाई नहीं की जाती। हां, वाहन जांच के नाम पर कभी-कभार हेलमेट आदि की चे¨कग जरूर कर ली जाती है। यह अभियान भी महज कोरम पूरा करने के उद्देश्य से पूरा किया जाता है।
अप्रशिक्षित गृह रक्षक व जवान संभाल रहे यातायात :
यातायात पुलिस नहीं होने की स्थिति में वर्तमान समय में यातायात पुलिस की जिम्मेदारी गृह रक्षक व बिहार पुलिस के जिम्मे है। हद तो यह कि जिनके जिम्मे जिला मुख्यालय की यातायात व्यवस्था की जवाबदेही है, उन्हें खुद यातायात के बारे में किसी भी तरह का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है। अलबत्ता वर्दी की धाक पर डंडे के बल पर ये वाहनों को सही लाइन में चलाने का प्रयास जरूर करते हैं। बावजूद इसके पूरा शहर हर दिन जाम जैसी समस्याओं से जूझने को विवश होता है। ऐसे में हर दिन जिला मुख्यालय में भी छोटी-मोटी दुर्घटनाएं भी होती हैं।
अवैध स्टैंड में होती है धन की वसूली :
यहां अव्यवस्थित यातायात व्यवस्था का सबसे बड़ा नमूना अवैध तरीके से चल रहे ऑटो व टैक्सी स्टैंड हैं। जिला मुख्यालय के बीचोबीच डाकघर चौक अघोषित रूप से टैक्सी स्टैंड कर स्वरूप ले चुका है। यहां यातायात व्यवस्था को बेहतर तरीके से चलाने की जिम्मेदारी उठाने वाले जवान ही हर दिन टैक्सी चालकों से पैसों की वसूली करते हैं। इस बात की जानकारी पुलिस से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक को है। लेकिन अवैध स्टैंड को बंद कराने के दिशा में आजतक कोई भी कार्रवाई नहीं की जा सकी है।
स्मार्ट कार्ड को भटक रहे लोग :
यहां ड्राइ¨वग लाइसेंस देने की व्यवस्था कागज पर पूरी तरह से दुरुस्त है। लेकिन यहां आज भी करीब तीस हजार लोग तैयार ड्राइ¨वग लाइसेंस के स्मार्ट कार्ड के लिए भटक रहे हैं। जिला परिवहन पदाधिकारी बताते हैं कि महीनों ने स्मार्ट कार्ड की आपूर्ति नहीं होने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में करीब 26 हजार लोगों का स्मार्ट ड्राइ¨वग लाइसेंस पें¨डग हैं। अलावा इसके गाड़ी के मूल कागजात के नाम पर स्मार्ट कार्ड आदि देने में भी की जा रही देरी व्यवस्थागत खामी का ही नतीजा है।
संसाधन का दिखता है अभाव :
भीड़भाड़ वाले इलाके में यातायात व्यवस्था के संचालन की जिम्मेदारी निभाने वाले जवान भी संसाधन की कमी झेल रहे हैं। चौराहों पर इनके खड़ा होने तक के लिए जगह का अभाव है। ऐसे में सड़क पर खडे होकर डंडा दिखाकर ये वाहनों को सीधे रास्ते चलाने की व्यवस्था करते हैं। लेकिन सड़क के बीचोबीच खड़े होने वाले इन जवानों के समक्ष भी हमेशा खतरे की स्थिति बनी रहती है। इनकी मानें तो उन्हें इस बात का डर बना रहता है कि कोई चालक तेज गति से गाड़ी चलाकर उन्हें ही अपना निशाना न बना दे। अलावा इसके यातायात व्यवस्था संभाल रहे जवानों को यातायात पुलिस की वर्दी तक उपलब्ध नहीं कराई गई है। जिसके कारण उन्हें परेशानियों से जूझना पड़ता है।