सुरक्षित सीट पर सुरक्षित होना चाहता 'हम'
बरास्ता कांग्रेस, राजद और जदयू पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अब भाजपा के साथ आ गए हैं। इस चुनावी बिसात पर मांझी ने अपनी राजनीतिक चाल चल दी है। और इसमें मोहरे के रूप में दलित-महादलित वोटर हैं।
गया [कमल नयन]। बरास्ता कांग्रेस, राजद और जदयू पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अब भाजपा के साथ आ गए हैं। इस चुनावी बिसात पर मांझी ने अपनी राजनीतिक चाल चल दी है। और इसमें मोहरे के रूप में दलित-महादलित वोटर हैं।
इनके बूते मांझी भाजपा के साथ मिलकर अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ का प्रभाव दिखाएंगे। मांझी पुराने राजनीतिज्ञ हैं। कांग्रेस से लेकर जदयू के शासन काल तक वे राज्य के किसी न किसी विभाग के मंत्री जरूर रहे। उस वक्त उनकी राजनीति पहचान 'सबों' के लिए थी। लेकिन इस बार के राजनीति ताना-बाना में पूर्व मुख्यमंत्री का पद और दलित-महादलित वोट तक सिमट कर रह गया है। इसके लिए उनके गृह जिले गया में ही उनकी 'अग्निपरीक्षा' होगी।
टिकट के मोर्चे पर भाजपा के साथ मांझी की 'हम' पार्टी का जो भी तालमेल हो लेकिन इतना तय है कि वे सबसे ज्यादा टिकट गया में ही बांटेंगे।
वैसे गया जिले के 10 विधानसभा में तीन विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए सुरक्षित है। इन सुरक्षित सीट पर मांझी की 'हम' पार्टी अपनी पूरी दावेदारी कर रही है। बोधगया, बाराचट्टी और इमामगंज विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए सुरक्षित सीट हैं।
फिलवक्त बोधगया भाजपा और बाराचट्टी व इमामगंज जदयू खाते में हैं। वैसे में बाराचट्टी और इमामगंज से 'हम' की दावेदारी तो फिट बैठती है। लेकिन भाजपा के बोधगया सीट पर संशय है।
'हम' पार्टी सूत्रों की माने तो तालमेल में बोधगया सीट 'हम' के खाते में आएगा। और इसके लिए मांझी ने एक युवा और चर्चित नेता का लगभग चयन भी कर लिया है। इमामगंज विधानसभा सीट 'हम' के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
इस सीट पर बिहार विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी के जीतने का सिलसिला बरकार है। चौधरी का इस क्षेत्र में अपना वोट बैंक है। मांझी की तैयारी इसी वोट बैंक में सेंध मारने की है। वैसे जातिगत आधार पर पलड़ा मांझी के पक्ष में झुका है। बताया जाता है कि इमामगंज विधानसभा क्षेत्र में मांझी के लोगों के वोट अधिक तादाद में हैं।
अब इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के 2010 चुनाव के आंकड़े पर नजर दौड़ायें। जदयू और भाजपा के संयुक्त उम्मीदवार उदय नारायण चौधरी को यहां 44 हजार 126 वोट मिले थे। और राजद के उम्मीदवार राकेश मांझी को 42 हजार 915 वोट आया था।
जीत का अंतराल काफी कम था। लेकिन इस बार तो पासा ही पलटा है। भाजपा अलग है, तो जदयू -राजद साथ में। इस आधार पर मांझी और चौधरी दोनों के ही लिए यह चुनाव काफी मुश्किलों भरा होगा।
सर्वविदित है कि गया के पूर्व सांसद राजेश कुमार हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने के मामले को लेकर मांझी और चौधरी के बीच खाई बराबर बढ़ती गयी है। यह खाई आने वाले चुनाव पर भी असर डाल सकती है।