बुद्ध की धरती पर कदम रखते ही जागृत होगा अध्यात्म का भाव
गया। भगवान बुद्ध की धरती पर कदम रखते ही स्वत: आध्यात्मिक भाव उत्पन्न हो जाए, इसे उसी रूप में ढालन
गया। भगवान बुद्ध की धरती पर कदम रखते ही स्वत: आध्यात्मिक भाव उत्पन्न हो जाए, इसे उसी रूप में ढालने का काम तेज हो गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनवरी में यहां आए थे तो यह इच्छा जाहिर की थी। दरअसल, विश्वविख्यात पर्यटन स्थल बोधगया देशी-विदेशी पर्यटकों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करता है।
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आस्था का अद्भुत केंद्र
आस्था के इस अद्भुत केंद्र में पर्यटक विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर में भगवान बुद्ध व पवित्र बोधिवृक्ष को नमन करने आते हैं। वैसे, बोधगया ध्यान-साधना के लिए भी विश्व में ख्यात है। फिलवक्त इसे आध्यात्मिक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।
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बुद्धमय हो रहा परिसर
विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध की आकर्षक प्रतिमा और शीर्ष पर स्वर्णाच्छादित गुंबद है। मंदिर परिसर के पश्चिम-दक्षिण छोर पर 21 अलग-अलग खंडों में 170 फीट लंबी दीवार पर राजकुमार सिद्धार्थ की बुद्धत्व प्राप्ति तक की गाथा बलुआ पत्थर पर उकेर कर लिखी गई है। जापान व जयश्री विहार में दीवार पर पेंटिंग के माध्यम से तो भूटान मंदिर में छोटी-छोटी मूर्ति बनाकर दीवार में आकर्षक ढंग से लगाई गई है।
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ताम्र पट्टिका पर सूत्त
मंदिर के प्रथम चंक्रमण पथ से लेकर साधना उद्यान तक 54 ताम्र पट्टिका पर आठ हजार प्रज्ञा पारमिता सूत्त अंकित हैं। बौद्ध धर्म में छह पारमिताओं का वर्णन है, जिसमें प्रज्ञा पारमिता का विशेष महत्व है। प्रज्ञा पारमिता के बारे में कहा जाता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के लिए प्रज्ञा का होना जरूरी है। मंदिर के बाहर लाल पैडस्टल क्षेत्र में जातक कथा पर आधारित भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म की कहानी बलुआ पत्थर पर उत्कीर्ण है। पूरब व दक्षिणी दिशा की बाहरी चारदीवारी में अष्टकमल सहित अन्य बुद्धकालीन कलाकृतियों को उकेरा गया है।
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मुख्यमंत्री ने जताई थी इच्छा
इसी साल जनवरी में कालचक्र पूजा की तैयारी का जायजा लेने बुद्धभूमि पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातक कथा पर आधारित भगवान बुद्ध के पूर्व जन्म की कहानी का उद्घाटन किया था। तब उन्होंने कहा था कि मंदिर क्षेत्र में प्रवेश करते ही अध्यात्म का भाव जागृत हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। बाह्य परिसर में भी पर्यटकों के ध्यान-साधना के लिए माहौल बनाने की जरूरत है। उसके बाद से मंदिर को आध्यात्मिक केंद्र के रूप में विकसित करने की प्रक्रिया में तेजी आई है।
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मंदिर में दान की लालसा
विश्व के विभिन्न देशों के बौद्ध श्रद्धालुओं की इच्छा विश्वदाय धरोहर के विकास या फिर मंदिर परिसर में कुछ यादगार स्मृति लगाने की होती है। मंदिर के गुंबद पर लगा सोना व मुचलिंद सरोवर के जल का शुद्धिकरण यंत्र थाईलैंड के श्रद्धालुओं द्वारा दिया गया है। ताम्रपट्टिका पर प्रज्ञा पारमिता सूत्त अंकित कराने का कार्य बुद्धा धम्मा फाउंडेशन इंटरनेशनल ने किया। मलेशिया के श्रद्धालुओं ने भगवान बुद्ध के जीवनवृत्त को बलुआ पत्थर पर उत्कीर्ण कराया।
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अशोका रेलिंग को दिया जाना है नया स्वरूप
महाबोधि मंदिर के मुख्य ढांचे से सटे अशोका रेलिंग को नया स्वरूप दिया जाना है। वर्तमान अशोका रेलिंग को शुंगकालीन शिल्पकला का अनोखा नमूना माना जाता है। इसी तर्ज पर नए सिरे से बलुआ पत्थर को आकर्षक तरीके से तराश कर अशोका रेलिंग का स्वरूप दिया जाएगा। अशोका रेलिंग के लिए मलेशिया के श्रद्धालुओं ने महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति को दान दिया है।